अब वो ज़िंदगी कहाँ है
जिसमें
आँगन थे चौबारे थे
चौपाल में
बुजुर्गों के ठहाके थे
गलियों में
किलकारी थी
दादी नानी
की कहानी थी
हरियाली का
आँगन था
मन हर्षाता
सावन था
घर-घर
हँसी ठिठोली थी
प्रीत भरी
हर होली थी
कल-कल करती
स्वच्छ नदी के
तट कितने
निर्मल पावन थे
नोंक-झोंक के
रस से भरे
रिश्ते भी
मनभावन थे
समय बदला
बदली रीत
खो गई कहीं
पहले सी प्रीत
अपने में
सब दुनिया सिमटी
हर रीत
दिखावे में लिपटी
अब इस
मशीनी दुनिया में
डिलीट एक्सेप्ट का
दौर चला
लाइक डिस्लाइक
के फेर में
फंसकर
इंसान अब
अकेला चला
खो गई
यह सारी खुशियाँ
अब कहीं शोर में
मशीन बना
जीवन जीता
मानव भी इस दौर में
©® अनुराधा चौहान स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
वाह। बहुत सही लिखा है आपने।
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सही और सटीक लिखा आपने ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteअब वो ज़िंदगी कहाँ
ReplyDeleteबहुत सही कहा आपने
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteअब नहीं हैं वो जिंदगी ... इस मचिनी जीवन में छुप के रह गई है ...
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Delete