चाँद टीका नभ सजाए
गीत गाए प्रीत के।
देख शरमाई धरा भी
धुन सुनाए रीत के।
चाँदनी भी मौन ठिठकी
बिम्ब देखा झील जो।
राह का पत्थर सँवरता
अब दिखाता मील जो।
चूड़ियाँ भी पूछती क्या
पत्र आए मीत के।
चाँद टीका……
कालिमा मुखड़ा छुपाए
भोर से शरमा रही।
रश्मियों को साथ भींगी
फिर पवन इठला बही।
बोलती रच दे कहानी
भाव लेकर नीति के।
चाँद टीका……
शब्द ढूँढे एक कोना
रिक्त अब पाती पड़ी।
लेखनी रूठी हुई है
आस कोने में खड़ी।
लेखनी को फिर मनालो
भाव लिख दो गीत के।
चाँद टीका……
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 15 अगस्त 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय।
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योति जी।
Deleteवाह!खूबसूरत सृजन सखी ।
ReplyDeleteधन्यवाद सखी।
Deleteलेखनी को फिर मना लो .... मानती ही तो नहीं ।
ReplyDeleteखूबसूरत गीत ।
हार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteशब्द ढूँढे एक कोना
ReplyDeleteरिक्त अब पाती पड़ी।
लेखनी रूठी हुई है
आस कोने में खड़ी।
लेखनी को फिर मनालो
भाव लिख दो गीत के।
वाह!बहुत खूब! मन की उधेड़बुन को दर्शाती सुन्दर भावासिक्त सृजन ।
मन के भाव अनुसार लेखनी कार्य करती है ...
ReplyDeleteकई कई दिन नहीं उठ्ठी ... पर फिर उठ जाती है ...
भावपूर्ण ...
हार्दिक आभार आदरणीय।
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