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Sunday, August 8, 2021

बूँदों की थिरकन


अंक लपेटे बहता पानी 
भिगा रहा धरती आंचल
प्रीत मेघ की बरस रही है
अँधियारे का रच काजल।

नृत्य दिखाती चपला गरजे
चाँद देख यह छुप जाए।
बूँदो की थिरकन टपरे पर
ठुमरी सा गीत सुनाए।
और नदी इठलाती चल दी
कर आलिंगन सागर जल।
अंक लपेटे...

निर्झर छाती चौड़ी करके
गान सुनाते मनभावन।
पत्थर की मुस्कान खिली फिर
पुष्प महकते निर्जन वन।
मेघ दिवाकर का रथ रोके
लिए खड़ा किरणों का हल।
अंक लपेटे...

सौरभ लेकर झूम रही है
सोई थी जो पुरवाई।
साँसों का कंपन अब जागा
मन पे छाई तरुणाई।
वसुधा अब शृंगार सजा के
भूली बंजर था जो कल।
अंक लपेटे...
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

9 comments:

  1. बहुत सुंदर चित्रण । झरना ,बादल सभी समा गए ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  2. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (10-8-21) को "बूँदों की थिरकन"(चर्चा अंक- 4152) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  3. बहुत सुन्दर !
    गुरुदेव टैगोर का गीत - 'वृष्टि करे टापुर-टापुर'
    याद आ गया !

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. वाह! बहुत खूब।

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  5. नृत्य दिखाती चपला गरजे
    चाँद देख यह छुप जाए।
    बूँदो की थिरकन टपरे पर
    ठुमरी सा गीत सुनाए।
    बहुत सुन्दर और मनमोहक नवगीत अनुराधा जी ।

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  6. झरनों और बूंदों के प्रवाह को बाखूबी लिखा है ...
    केनवस की तरह उतारे हैं शब्द ...

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