सावन बीत गया
बीत रहा बसंत
पतझड़-सा हो गया
जीवन का सफ़र
समय की चाल से
मन में बसाए हसीं
लम्हों की सुनहरी याद
ढलती जाए उमरसमय की चाल से
सब कुछ बदल जाता है
वक़्त की तेज रफ्तार में
रिश्ते भी सूखे पात से
उड़ जाते बहार में
ज़िंदगी का बसंत
फिर लौटकर नहीं आता
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
ज़िंदगी का भी दामन
छूटता जाता है
तब यादों के ख़ज़ाने से
निकलते हैं कुछ छिपे हुए
दर्द, तड़प और तन्हाई
कुछ प्यारी-सी यादें
कुछ टूटे सपनों की किर्चें
तो कुछ अनमोल सौगातें
मस्ती भरी याद बचपन की
मनभाती अल्हड़ जवानी
बीत जाते कब यह पल
यादें रह जाती हैं बाकी
***अनुराधा चौहान***