रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
फिर बिखरती आस पूछे
पीर यह कैसी पुरानी।
गूँजती अब मौन चीखें
आह का क्रंदन सुनाती।
हर गली में मौत से डर
श्वास बस छुपती छुपाती।
है समय की चाल टेढ़ी
बात कब किसी ने मानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
सुलगते शमशान कहते
सत्य तेरा पहचान ले।
काठ की गठरी सुलगती
फिर नहीं कोई नाम ले।
चीखती परछाइयों की
पीर कब गई पहचानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
काल की बोले कुठारी
प्यास जीवन से बुझेगी।
गिन रहा अम्बर सितारे
कभी यह गणना रुकेगी।
कर रही है मौत आहट
चाल नहीं यह अनजानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
©®अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार
गूँजती अब मौन चीखें
ReplyDeleteआह का क्रंदन सुनाती।
हर गली में मौत से डर
श्वास बस छुपती छुपाती।
है समय की चाल टेढ़ी
बात कब किसी ने मानी।
हृदयस्पर्शी सृजन सखी।
हार्दिक आभार सखी।
ReplyDeleteआपकी कविता तो सदा की भांति प्रभावी, मर्मस्पर्शी एवं आपके सृजन के चितपरिचित स्तर के अनुरूप ही है आदरणीया अनुराधा जी। मुझे छंदबद्धता में कहीं-कहीं कुछ त्रुटि अनुभव हुई। अन्यथा न लगे तो एक बार पुनरावलोकन कर लीजिएगा।
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteवर्तमान समय की सच्ची तस्वीर पेश करती सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार अनीता जी।
Deleteवर्तमान समय का चित्र खींच दिया है ....मन सिहर सिहर जाता है । आज बिल्कुल यही हालात हैं जो इस रचना में वर्णित हैं ।
ReplyDeleteएक शब्द टाइपिंग की गलती दिखा रहा है ...
गढ़ना / गणना कर लें ।
जी हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteजो हो रहा है,जो महसूस किया जा रहा है
ReplyDeleteउसको इस रचना में आपने जो व्यक्त किया है
वह कमाल है
मार्मिक सच को बयान करता
मन को छूता सृजन
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआज के समय को उकेरती हृदय स्पर्शी रचना।
ReplyDeleteबहुत सुंदर सखी।
हार्दिक आभार सखी
Deleteवाह , आज की व्यथा वेदना को समर्थ स्वर देती बहुत ही सुन्दर सशक्त मार्मिक गीत .
ReplyDeleteहार्दिक आभार गिरिजा जी
Deleteवर्तमान को शब्दों में उतार दिया है ...
ReplyDeleteसुन्दर भावपूर्ण रचना ...
हार्दिक आभार आदरणीय
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