समाज में आज-कल कुछ ऐसी घटनाएं घटित हो रही है जो अक्सर मन में एक बैचेनी पैदा करने लगती हैं यह बेहद चिंता का विषय है मेरे मन के भाव प्रकट करती यह रचना
जातिवाद के
मुद्दे लेकर
न टकराओ
आपस में
न कुकर्म
करो इतने
शर्म मर जाए
आंखों में
मत उगलो
जहर इतना
कि जीना
मुश्किल हो जाए
इंसान मरे
या न मरे
सर्प शर्म से
मर जाए
मत पालो
नफरत इतनी
दिल भी
पत्थर हो जाए
प्यार बिचारा
सदा के लिए
दिल के दौरे
से मर जाए
अभी वक्त है
संभल जाओ
करनी को
अपनी सुधार लें
बीज डाल कर
प्यार के
नेकी के
पौधे लगाले
जो बोए बीज
बबूल के
आम कहां से
पाओगे
इंसानियत को
अपनी बचाके
प्यार की कुछ
बारिश करले
***अनुराधा चौहान***
जातिवाद के
मुद्दे लेकर
न टकराओ
आपस में
न कुकर्म
करो इतने
शर्म मर जाए
आंखों में
मत उगलो
जहर इतना
कि जीना
मुश्किल हो जाए
इंसान मरे
या न मरे
सर्प शर्म से
मर जाए
मत पालो
नफरत इतनी
दिल भी
पत्थर हो जाए
प्यार बिचारा
सदा के लिए
दिल के दौरे
से मर जाए
अभी वक्त है
संभल जाओ
करनी को
अपनी सुधार लें
बीज डाल कर
प्यार के
नेकी के
पौधे लगाले
जो बोए बीज
बबूल के
आम कहां से
पाओगे
इंसानियत को
अपनी बचाके
प्यार की कुछ
बारिश करले
***अनुराधा चौहान***