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Friday, November 30, 2018

दिल से इक आवाज़ आई

दिल से इक आवाज़ आई
क्यों ओढ़ ली तूने तन्हाई
क्या मज़ा है चुप-चुप जीने में
कुछ दर्द छुपा क्या सीने में

फिर मन ने भी आवाज़ लगाई
कितनी सुहानी सुबह है आई
क्यों रोकर इसको खोते हो
क्यों नहीं खुल कर जीते हो

सुन कर दिल की आवाज़े
खोले फिर मन के दरवाजे
प्रकृति की मोहक सुंदरता
देख बहने लगा भावों का झरना

सूरज की चमकती किरणों से
जब धरती ने अंगड़ाई ली
मन में उठते विचारों ने फिर
बन कविता अंगड़ाई ली

सुन कर प्रकृति की आवाज़ें
कहीं कोयल कूके,हवा चले
हिलते पेड़ों की सरगम बहे
कल-कल करती नदियाँ बहें

अब तक खुद में खोया हुआ
इन आवाजों से दूर रहा
ख़ामोश बहारें सुंदर नजारे
ख़ामोशी से आवाज़ लगाते

कितना कुछ कहती यह घाटियां
ऊंँची सुंदर पर्वतों की चोटियांँ
सुनना है अगर इनकी आवाज़ें
मन में सुंदर एहसास चाहिए

शोर-शराबा,हल्ला-गुल्ला
यह कान फोड़ती आवाज़ें
इन सब से तो अच्छी होतीं
ख़ामोश प्रकृति की आवाज़ें
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 29, 2018

मन दर्पण


मन दर्पण आशा ज्योती
रंग भरें इसमें भावों के मोती
भावनाओं का सागर अपार
कितना सुंदर यह संसार
सबके मन में प्यार बसा है
शब्दों का संसार बसा है
साहित्य के रंगों में रंगी है
मन के दर्पण में इसकी छवि है
यह रचनाएं दिल की धड़कन
इनमें बसा आज और कल
आत्मा से निकले बोल
इनके शब्द बड़े अनमोल
प्रीत की रीत सदा चली आई
हमने भी यह रीत निभाई
हम साथी भावों के सच्चे
छूटे न यह रंग हैं पक्के
मन का दर्पण झूठ न बोले
ख्व़ाबों के नित बने घरोंदे
दिल में जो बसती सूरत है
दर्पण में वही दिखती मूरत है
मन का दर्पण सदा रहे साफ
सबसे रखो प्रेम सद्भाव
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 28, 2018

संस्कृति की पहचान ग्रंथ


युगों-युगों का राज बसाए
रहस्य अनेकों इनमें छुपाए
ऋषि मुनियों का यह वरदान
यह ग्रंथ संस्कृति की पहचान
भुगोल, विज्ञान और गणित
भौतिक ज्ञान का अनुपम भंडार
इन महान ग्रंथों में भरा है
विज्ञान के रहस्यों का ज्ञान
वेद,पुराण श्री मद्भागवत गीता
ग्रंथों में बसे राम और सीता
श्री रामायण अनुपम कृति
जिसमें श्री राम की महिमा बसी
महाभारत कृति ऋषि व्यासजी की
मेघदूत,कालिदास, श्रेष्ठ ग्रंथ
रामचरित मानस,सूरसागर
अद्भुत ग्रंथों में ज्ञान का सागर
रस में भीगी हमारी सभ्यता
उत्तम चरित्र की देती शिक्षा
धर्म-पथ और सत्कर्म का
देकर हमको संस्कार
संस्कृति की पहचान ये ग्रंथ,
भारत की शान यह ग्रंथ
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 27, 2018

विधाता की अनमोल कृति


हंसती मुस्कुराती चंचल सी
मन को भाती मनमोहिनी सी
यह प्रकृति का अनुपम उपहार
बेटियां हैं घर का शृंगार
अपने कोमल निर्मल मन से
करती शोभित दो-दो घर
माँ-बाप के दिल का यह टुकड़ा
सुंदर इनका चाँद सा मुखड़ा
करती शोभित घर पिया का
करती रोशन नाम पिता का
प्रभु की यह अनमोल कृति है
उपहार में जो सबको मिली है
फिर भी इसका कोई मोल न जाने
मिलते सदा ही इसको ताने
टूटती बिखरती उठ खड़ी होती
मुश्किल में भी यह डटी रहती
हर जगह तिरस्कार है पाती
फिर भी सदा रहती मुस्कुराती
कोई न पाए इसको तोड़
बेटियां है पर नहीं कमजोर
माँ काली का है यह वरदान
बेटियां विधाता का अनुपम उपहार
सृष्टि की यह अनमोल कृति
नारी रिश्तों की है जननी
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 22, 2018

थोड़ा रूमानी हो लेते हैं

उम्र ढलती है ढलती रहे ग़म नहीं
तेरी चाहतों में जिक्र मेरा हरपल रहे
तेरे रूमानियत पर फ़िदा मैं रहा
प्यार मेरा कभी भी कम न हुआ
तेरी आंखों की मस्ती में डूबा सदा
तू सलामत रहे बस यही है दुआ
उम्र कोे रख परे बैठ पहलू में मेरे
बीते लम्हों की यादों में जीतें हैं फिर
थोड़ा तू कुछ कहे कुछ मैं भी कहूं
थोड़ा रूमानी होकर जी लें यह पल
खुशबुओं सी बिखरती यह शामें रहें
मैं तेरे दिल में रहूं तू मेरे दिल में रहे
शाख पे जो खिले फूल छोड़ चले गए हमें
हम जहां से चले थे फिर आ गए वहां
अब सुख-दुख में एक-दूजे के साथी हैं हम
जिंदगी रोकर नहीं हंस कर काटेंगे हम
पुरानी यादों में फिर से खो जातें हैं
आज थोड़ा रूमानी होकर जी जातें हैं
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 21, 2018

पुष्प धरा का श्रृंगार

पुष्पों की सुंदर सौगात
करती धरा का श्रृंगार
लाल, गुलाबी,पीले
पुष्प यहां कई रंग के खिलते
लाल पुष्प कुमकुम सी आभा
सबके मन को बहुत लुभाता
पीले पीले पुष्प सुनहरे
सोने सी छटा बिखेरे
सफेद पुष्पों की फैली चादर
जैसे आसमां से उतरा बादल
गाल गुलाबी नवयौवना के
पुष्प गुलाबी कोमल ऐसे
धरती की धानी चूनर भी
सतरंगी पुष्पों से सजी है
करने धरा का यह श्रृंगार
प्रभू की यह अनमोल कृति है
सुंदर सुंदर बाग बगीचे
सब इनकी खुशबू से महके
बने प्रभू के गले का हार
पुष्प बिना अधूरा श्रृंगार
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 20, 2018

खो गई हंसी

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जिनकी शरारतों से
गूंजती थी हर गली
आज किताबों के बोझ तले
खो गई उनकी हंसी

शरारतें उनकी करती थी
हमको हंसने पर मजबूर
आज अकेले रहते रहते
खुद गए हंसना भूल

रिश्तों की बगिया में कभी
खिलता था बच्चों मन
आज शरारत कैसे करें
सूना है उनका बचपन

अब बैठना सीखते ही
बालवाड़ी की ओर चले
मां-बाप बिचारे अॉफिस में
वो आया की गोद में पले

घर में बंद,स्कूल में बंद
बंधा-बंधा उनका जीवन
शरारतें करने बैठे तो
कैसे पढ़ाई में आएं अव्वल

बदलते हैं तौर तरीके
बचपन उनका महकाते हैं
साथ उनके बच्चे बन कर 
हम भी शरारत करते हैं
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 16, 2018

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव की
रीत है सदियों पुरानी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमने
यह सीख सदा ही जानी
वो भी क्या दिन थे
जब रिश्तेदारों का
होता आना-जाना था
यादों की पोटली से
निकलता पुरानी
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
वक्त की हो गई बड़ी कमी
और प्रीत बदलते देखी है
अतिथि देवो भव की भी
अब रीत बदलते देखी है
आना-जाना तो लगा रहता
पर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
***अनुराधा चौहान***

Wednesday, November 14, 2018

हम फिर से बच्चे बन जाते हैं

भूल कर सारे ग़म 
आज फिर खिलखिलाते हुए
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
भूल के झगड़े पुराने
आओ मिलकर गाएं गाने
दोस्ती का जश्न मनाते हैं
पहन कर रंग बिरंगी टोपियां
खुशियों को फिर बुलाते हैं
उम्र हमारी अब ढल चुकी तो क्या
दिल तो अभी भी बच्चा है
बच्चों को नहीं फिकर हमारी
दोस्तों का प्यार सच्चा है
आज उम्र को परे रखकर
गीत पुराने गुनगुनाते हैं
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
जन्मदिन आज साथी का 
मिलकर धूम मचाते हैं
अब साथी हम सुख-दुख के सभी
जिंदगी साथ बिताते हैं
छोड़ दिया साथ हमारे अपनों ने
साथ न छोड़ा हमारे सपनों ने
जिंदगी जब हमें यहां ले आई
तो फिर क्यों झेलें हम तन्हाई
हम तनहाईयों को ठेंगा दिखाते हैं
आज फिर खिलखिलाते हुए
हम फिर से बच्चे बन जाते हैं
***अनुराधा चौहान***

Tuesday, November 13, 2018

तरसता बचपन

गरजती घटाएं 
बरसता है सावन
कहीं सिर छिपाने को
तरसता है बचपन
न घर न घराना
न खाने का ठिकाना
कहीं अभावों में
पलता है बचपन
कहीं पैसो के बीच
खेलता है बचपन
गरीबी की गुलामी में जकड़ा है बचपन
भरने पेट अपना करते मजदूरी
दो वक्त रोटी खाने के लिए
तरसता है बचपन
कचरे के ढेर पर
सुख बीनता है बचपन
कहने को कहते सब
बचपन होता सुहाना
यह कैसा बचपन है
जो ढूढ़ता है ठिकाना
कभी बारिश से बचने 
तड़पता है बचपन
कहीं सर्द हवाओं में
दम तोड़ता है बचपन
गरीबों के बच्चों का
होता दुखदाई बचपन
बने कई आश्रम इनकी मदद को
कहीं मिलता सुख है
कहीं शोषित होता बचपन
***अनुराधा चौहान***

हम हरपल हैं खोए

क्यों दिल के तार
झनझनाते हैं
क्यों अकेले में
 हम मुस्कुराते हैं
लगाकर तस्वीर तेरी
हम सीने से अपने
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
यह तेरी मोहब्बत है
या नजर का छलावा
कैसे भूलूं तुझको
तुझे दिल में बसाया
आजा ओ हरजाई
करके बहाना
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
तन्हाइयों के बादल
आकर घिरें हैं
अश्कों के मोती
चमकने लगें हैं
कर प्रेम की बारिश
आ गले से लगा ले
देख यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
जीने न देंगी
ज़माने की रुसवाई
मरने न देगा
तेरा प्यार हरजाई
चाहते हो तुम भी मुझको
मैं यह जानतीं हूँ
यादों में मेरी तुम भी
हरपल हो खोए
यादों में तेरी
हम हरपल हैं खोए
***अनुराधा चौहान***

Monday, November 12, 2018

इरादे थे मजबूत


इरादे थे मजबूत
निकल दिए सफ़र पर
राह में थे कांटे मगर
मंजिल पाने की
आस लिए
आंखों में थी
जुगनू सी चमक
छूने चल दिए आकाश
अपनों ने रोका
गैरों ने टोका
रास्तों को हमारे
पत्थरों से रोका
इरादे थे मजबूत
कदम बढ़ते गए
ख्वाबों के जुगनू
जगमगाते रहे
मंज़िल के अपनी
करीब आ गए हम
मिली कामयाबी
हालात बदल गए
अपनों के अब देखो
जज़्बात बदल गए
लगाने गले भीड़ बढ़ने लगी
क़िस्मत पर हमारे
रश्क करने लगी
सितारों से तुलना
लगी करने हमारी
मगर मस्तमौला है
फितरत हमारी
सितारा नहीं जुगनू
बन कर ही खुश हैं
मंज़िल को पाकर
हम बहुत खुश हैं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

Friday, November 9, 2018

मीठे अनुभव

मीठे अनुभवों की
मीठी यादें देकर
पांच दिन की
धूम मचा कर
कर गई सूना मन
                          दीपावली की जगमग से
रोशन था घर और मन
मेहमानों से भरा घर आंगन
मस्ती से झूमता
बच्चों का मन
कुछ नये लम्हों की मस्ती थी
कुछ बीते लम्हों की यादें
मिलकर खूब धूम मचाई
फिर से सब हो लिए
वापस अपने घर 
लेकर नई सुनहरी यादें
चलो जिएं फिर वही जिंदगी
लेकर मन में मीठे अनुभव
चलो पल बांटें
खुशियों के हम
वक्त के साथ आगे बढ़ना
यही दुनिया की रीत है
नए अनुभवों को जीते रहना
यही जीवन से प्रीत है
***अनुराधा चौहान***

Sunday, November 4, 2018

आओ दीप जलाएं

आओ दीप जलाएं
अज्ञानता का जीवन से
मिलकर अंधकार मिटाएं
एक दीप आस का
आपस में प्रेम विश्वास का
एक दीप मोती सा
हो जीवन में ज्योती का
एक दीप वरदान का
जगती के कल्याण का
एक दीप सीप सा
यश प्रकाशित हो दीप सा
एक दीप सोने सा
वक्त नहीं अब खोने का
एक दीप प्रीत का
जीवन मधुर संगीत सा
एक दीप चाँदी सा
हो सबकी खुशहाली का
एक दीप रोली सा
जीवन में रंग भरे रंगोली सा
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार    

Saturday, November 3, 2018

दीपावली का त्यौहार

मनभावन और प्यारा
       दीपावली का त्यौहार आया        
घर घर होती साफ-सफाई
माँ,दादी बनाती मिठाई
बन रही चकली,मठरी
बनते गुझिया और फरसाण
द्वार खड़ा झांके है मुन्नू
गुड़िया माँ से लाड़ लगाए
देख के इनकी बाल शरारत
दादी,बुआ मंद-मंद मुस्काए
करते मनुहार बाल सलोने
हमको मिठाई खाने को देदो
फिर न हम तुमको सताएं
फुलझड़ी पटाखे जो पापा ने दिलाए
द्वार पर जाकर फिर हम चलाएं
दीपावली का त्यौहार अनूठा
जगमग करता कोना कोना
चलो सब मिलकर दीप जलाएं
अपने घर आंगन को दीपों से सजाएं
करें हम माँ लक्ष्मी की पूजा
सबके जीवन से हो दूर अंधेरा
हो जग में ऐसा उजियारा
***अनुराधा चौहान***

Friday, November 2, 2018

गुजरा हुआ कल

झेले हैं कई मौसम
जीवन के कई रंग भी देखे
पर एक रंग नफ़रत का
मैं सह नहीं पाया
बारिश की इन फुहारों में
गूंजती थी यह गलियां
इस घर के लोगों से
आज सूनी हैं राहें
कोई नज़र नहीं आता
बेरंग से हो गए
अब सारे नजारे
घाटियां भी चीखती हैं
अपने हालातों पर
कभी सजती थी महफिलें
मेरे घर के आंगन में
बनते थे पकवान
सुगंध समाती थी दिवारों में
अब न तीज है न त्यौहार है
बस एक सूनापन है
काश कोई लौटा देता
जो मेरा गुज़रा हुआ कल है
***अनुराधा चौहान***

Thursday, November 1, 2018

ज्योति पर्व

-------*ज्योति पर्व*---------
आओ जीवन में नई ज्योति जलाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
करके ज्ञान का प्रकाश
कर दो ज्योतिर्मय संसार
आओ अज्ञानता को दूर भगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
तम का न हो कोई निशान
करदो प्रकाशित हर एक कोना
कोई न रोए दुखों का रोना
भाईचारे का संदेश फैलाकर
सबके दिलों में प्यार जगाकर
आओ आशा की नई ज्योति जगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
यह तब तक संभव न होगा
जब तक हर घर शिक्षित न होगा
अंधविश्वास को दूर भगाकर
सबके मन में विश्वास जगाकर
आओ सबका जीवन सफल बनाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
कब तक सब आपस में लड़ोगे
जीवन को यूं ही खोते रहोगे
मन से अपने मैल निकाल कर
करो फिर से एक नई शुरुआत
आओ एक-दूजे को गले लगाएं
ज्योति पर्व हम मिल कर मनाएं
***अनुराधा चौहान***