Followers

Thursday, November 22, 2018

थोड़ा रूमानी हो लेते हैं

उम्र ढलती है ढलती रहे ग़म नहीं
तेरी चाहतों में जिक्र मेरा हरपल रहे
तेरे रूमानियत पर फ़िदा मैं रहा
प्यार मेरा कभी भी कम न हुआ
तेरी आंखों की मस्ती में डूबा सदा
तू सलामत रहे बस यही है दुआ
उम्र कोे रख परे बैठ पहलू में मेरे
बीते लम्हों की यादों में जीतें हैं फिर
थोड़ा तू कुछ कहे कुछ मैं भी कहूं
थोड़ा रूमानी होकर जी लें यह पल
खुशबुओं सी बिखरती यह शामें रहें
मैं तेरे दिल में रहूं तू मेरे दिल में रहे
शाख पे जो खिले फूल छोड़ चले गए हमें
हम जहां से चले थे फिर आ गए वहां
अब सुख-दुख में एक-दूजे के साथी हैं हम
जिंदगी रोकर नहीं हंस कर काटेंगे हम
पुरानी यादों में फिर से खो जातें हैं
आज थोड़ा रूमानी होकर जी जातें हैं
***अनुराधा चौहान***

16 comments:

  1. आह़ा !!!!!! उम्र की सीमाएं भूलती इस रुमानियत के क्या कहने !!!!!यदि ये बरकरार रहे तो जीवन दूभर कभी ना हो |---
    यह शामें रहें
    मैं तेरे दिल में रहूं
    तू मेरे दिल में रहे
    शाख पे जो खिले फूल
    छोड़ चले गए हमें
    हम जहां से चले थे
    फिर आ गए वहां
    अब सुख-दुख में
    एक-दूजे के साथी हैं हम!!
    जीवन के मधुर लम्हों की जीने की मधुर कामना से भरी और शाश्वत अनुराग से लबरेज इस गरिमापूर्ण रचना के लिए आपकी मुक्त कंठ से प्रशंसा करती हूँ प्रिय अनुराधा बहन | मुझे तो बहुत ही प्यारी लगी ये रचना और चित्र भी कमाल का संलग्न है जो रचना के भावों को परिभाषित करने में सक्षम है | मेरी ढेरों शुभकामनायें और बधाई सखी |

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत आभार रेनू जी

      Delete
  2. तेरे रूमानियत
    पर फ़िदा मैं रहा
    प्यार मेरा कभी भी
    कम न हुआ
    तेरी आंखों की
    मस्ती में डूबा सदा
    तू सलामत रहे
    बस यही है दुआ
    उम्र कोे रख परे
    बैठ पहलू में मेरे
    वाह !!!
    लाजवाब रुमानियत....

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

      Delete
  3. वाह बहुत सुंदर सखी जीवन का सारा सत्व रख दिया आपने ।
    बहुत सुंदर !
    जीवन का संध्या काल भी जीवन साथी के स्नेह से जीवंत हो उठता है ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

      Delete
  4. बहुत सुंदर ! उम्र के इसी पड़ाव पर तो एक दूजे के साथ की अहमियत पता चलती है। यही वास्तविक रूमानियत है।

    ReplyDelete
  5. अनुराधा जी आपकी इस बहुत सुंदर रचना पर समय पर नज़र न पड़ी इसलिए हमक़दम में शामिल न कर सके...माफी चाहते हैं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. अरे माफी की कोई बात नहीं श्वेता जी हो जाता है इतनी रचनाएं पोस्ट होती रहती हैं।आपको रचना पसंद आई यही बहुत है।मेरे लिए बहुत बहुत आभार आपका

      Delete
  6. बहुत ही सुंदर कविता
    👌👌👌👌

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

      Delete
  7. बहुत सुंदर शब्द सुरुचि रचना जो उम्र के हर दौर को समेटे हुए ..

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार पम्मी जी

      Delete