रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
फिर बिखरती आस पूछे
पीर यह कैसी पुरानी।
गूँजती अब मौन चीखें
आह का क्रंदन सुनाती।
हर गली में मौत से डर
श्वास बस छुपती छुपाती।
है समय की चाल टेढ़ी
बात कब किसी ने मानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
सुलगते शमशान कहते
सत्य तेरा पहचान ले।
काठ की गठरी सुलगती
फिर नहीं कोई नाम ले।
चीखती परछाइयों की
पीर कब गई पहचानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
काल की बोले कुठारी
प्यास जीवन से बुझेगी।
गिन रहा अम्बर सितारे
कभी यह गणना रुकेगी।
कर रही है मौत आहट
चाल नहीं यह अनजानी।
रात की कालिख लपेटे
शून्यता कहे कहानी।
©®अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार