पाप बढ़ा धरती पे भारी
आपस में ही लोग लड़े।
बेशर्मी की चादर ओढ़े
गलियों में शैतान खड़े।
संस्कारों की बलि चढ़ाकर
देह देखते बस नारी।
बने दुशासन चीर खींचते
कहाँ भागती बेचारी।
आहत हो चीत्कार करे फिर
स्वप्न बिखर के भूमि पड़े।
पाप...
बेबस औ लाचार बुढ़ापा
आज तड़पता रोटी को।
थिरक रहे गीतों की धुन पर
नोच रहे हैं बोटी को।
देख लाल की ओछी करनी
मात हृदय में सूल गड़े।
पाप...
स्वार्थ के मद में सब डूबे
करुणा कैसे हृदय बसे।
भाई भाई का बैरी बन
मात-पिता के स्वप्न डसे।
सुरा सुधा से लगे डूबने
अपनी जिद पर खड़े अड़े।
पाप...
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 15 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया।
Deleteपाप बढ़ा धरती पे भारी
ReplyDeleteआपस में ही लोग लड़े।
बेशर्मी की चादर ओढ़े
गलियों में शैतान खड़े।
बहुत लम्बी फेहरित मिल जायेगी आज ऐसे लोगों की
.. सटीक लिखा है आपने
हार्दिक आभार कविता जी।
Deleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
--
कामिनी सिन्हा
वाह
ReplyDeleteधन्यवाद उषा जी।
Delete
ReplyDeleteस्वार्थ के मद में सब डूबे
करुणा कैसे हृदय बसे।
भाई भाई का बैरी बन
मात-पिता के स्वप्न डसे।
सुरा सुधा से लगे डूबने
अपनी जिद पर खड़े अड़े।
पाप...
बहुत बहुत सुन्दर
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteकलियुग का एक कुत्सित रूप जिसे उजागर करना आवश्यक है, मगर सिक्के का दूसरा पहलू भी है
ReplyDeleteजी हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteये सब तो दिनोदिन बढ़ना ही है ।अंत आने वाला कलयुग का । बहुत से मुद्दे उठाए हैं एक ही रचना में ।
ReplyDeleteसोचने पर मजबूर करती रचना
ReplyDelete
यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक हृदय स्पर्शी रचना सखी।
ReplyDeleteसुंदर नवगीत बना है ।
सस्नेह।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी
Deleteसमाजिक बुराइयों को इंगित करता हृदयस्पर्शी नवगीत ।
ReplyDeleteसंगीता जी ने सही कहा है, एक ही रचना मे कई मुद्दे नजर आये, आजकल की फिल्म मुझे इसलिए पसंद नही आती, शर्म, हया, मान इज्जत तो रही ही नहीं गई है,सिर्फ धन- तन से ही मतलब रह गया है, जीवन का कोई सार्थक लक्ष्य नजर नही आता, फिल्में समाज की सच्चाई दिखा रही हैं या भटका रही है, इस बात को लेकर मै दुविधा मे हूँ, गन्दगी और डर अपना विस्तार तीव्र गति से बढ़ा रहे हैं , अति उत्तम , अच्छा लगा पढ़कर अनुराधा जी, शुभ प्रभात, आप सभी की पोस्ट के बारे में मुझे खबर ही नही लगती यही कारण है किसी के आने के बाद ही उसके ब्लॉग पर आना होता है,नई रचना की जानकारी मिलती है,मेरी रचना की जानकारी सबकों तुरंत मिल जाती है, पता नही कैसे,आपलोग वो तरीका बताने का कष्ट करे, पहले भी मैं इस बात की चर्चा की रही किसी ने जवाब नहीं दिया, शायद आप दे सके, नया नया ब्लॉग रहा तब सबकी पोस्ट नजर आती थी, मै समय मिलते पहुँच जाती थी, मगर कुछ सालों से ऐसा नहीं होता, मुझे खराब लगता है,किसी के आने के बाद पता चलता है । आज जब इस रचना को पढ़ी तो लगा इतनी अच्छी रचना के बारे में नई पोस्ट आने के बाद जान पाई,
ReplyDeleteरचना से प्रभावित होकर ज्यादा लिख गई माफी चाहती हूँ,सादर नमन, शुभ प्रभात, बहुत बहुत बधाई हो आपको
आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आदरणीया।
Deleteमैंने आपको फॉलो किया है इसलिए आपकी रचना की नोटिफिकेशन रीडिंग लिस्ट में जाकर मिल जाती है।आप भी सबको फॉलो करेंगी तो उन सबकी पोस्ट रीडिंग लिस्ट में मिलने लगेगी।