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Sunday, March 14, 2021

संस्कारों की बलि


 पाप बढ़ा धरती पे भारी
आपस में ही लोग लड़े।
बेशर्मी की चादर ओढ़े
गलियों में शैतान खड़े।

संस्कारों की बलि चढ़ाकर
देह देखते बस नारी।
बने दुशासन चीर खींचते
कहाँ भागती बेचारी।
आहत हो चीत्कार करे फिर
स्वप्न बिखर के भूमि पड़े।
पाप...

बेबस औ लाचार बुढ़ापा
आज तड़पता रोटी को।
थिरक रहे गीतों की धुन पर
नोच रहे हैं बोटी को।
देख लाल की ओछी करनी
मात हृदय में सूल गड़े।
पाप...

स्वार्थ के मद में सब डूबे
करुणा कैसे हृदय बसे।
भाई भाई का बैरी बन
मात-पिता के स्वप्न डसे।
सुरा सुधा से लगे डूबने
अपनी जिद पर खड़े अड़े।
पाप...
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित ✍️
चित्र गूगल से साभार

19 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 15 मार्च 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  2. पाप बढ़ा धरती पे भारी
    आपस में ही लोग लड़े।
    बेशर्मी की चादर ओढ़े
    गलियों में शैतान खड़े।
    बहुत लम्बी फेहरित मिल जायेगी आज ऐसे लोगों की
    .. सटीक लिखा है आपने

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    1. हार्दिक आभार कविता जी।

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  3. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (16-3-21) को "धर्म क्या है मेरी दृष्टि में "(चर्चा अंक-4007) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    --
    कामिनी सिन्हा

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  4. स्वार्थ के मद में सब डूबे
    करुणा कैसे हृदय बसे।
    भाई भाई का बैरी बन
    मात-पिता के स्वप्न डसे।
    सुरा सुधा से लगे डूबने
    अपनी जिद पर खड़े अड़े।
    पाप...
    बहुत बहुत सुन्दर

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    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  5. कलियुग का एक कुत्सित रूप जिसे उजागर करना आवश्यक है, मगर सिक्के का दूसरा पहलू भी है

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    1. जी हार्दिक आभार आदरणीया

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  6. ये सब तो दिनोदिन बढ़ना ही है ।अंत आने वाला कलयुग का । बहुत से मुद्दे उठाए हैं एक ही रचना में ।
    सोचने पर मजबूर करती रचना

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  7. यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक हृदय स्पर्शी रचना सखी।
    सुंदर नवगीत बना है ।
    सस्नेह।

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  8. बहुत ही मार्मिक अभिव्यक्ति आदरणीय दी।
    सादर

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  9. समाजिक बुराइयों को इंगित करता हृदयस्पर्शी नवगीत ।

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  10. संगीता जी ने सही कहा है, एक ही रचना मे कई मुद्दे नजर आये, आजकल की फिल्म मुझे इसलिए पसंद नही आती, शर्म, हया, मान इज्जत तो रही ही नहीं गई है,सिर्फ धन- तन से ही मतलब रह गया है, जीवन का कोई सार्थक लक्ष्य नजर नही आता, फिल्में समाज की सच्चाई दिखा रही हैं या भटका रही है, इस बात को लेकर मै दुविधा मे हूँ, गन्दगी और डर अपना विस्तार तीव्र गति से बढ़ा रहे हैं , अति उत्तम , अच्छा लगा पढ़कर अनुराधा जी, शुभ प्रभात, आप सभी की पोस्ट के बारे में मुझे खबर ही नही लगती यही कारण है किसी के आने के बाद ही उसके ब्लॉग पर आना होता है,नई रचना की जानकारी मिलती है,मेरी रचना की जानकारी सबकों तुरंत मिल जाती है, पता नही कैसे,आपलोग वो तरीका बताने का कष्ट करे, पहले भी मैं इस बात की चर्चा की रही किसी ने जवाब नहीं दिया, शायद आप दे सके, नया नया ब्लॉग रहा तब सबकी पोस्ट नजर आती थी, मै समय मिलते पहुँच जाती थी, मगर कुछ सालों से ऐसा नहीं होता, मुझे खराब लगता है,किसी के आने के बाद पता चलता है । आज जब इस रचना को पढ़ी तो लगा इतनी अच्छी रचना के बारे में नई पोस्ट आने के बाद जान पाई,
    रचना से प्रभावित होकर ज्यादा लिख गई माफी चाहती हूँ,सादर नमन, शुभ प्रभात, बहुत बहुत बधाई हो आपको

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    Replies
    1. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए हृदयतल से आभार आदरणीया।
      मैंने आपको फॉलो किया है इसलिए आपकी रचना की नोटिफिकेशन रीडिंग लिस्ट में जाकर मिल जाती है।आप भी सबको फॉलो करेंगी तो उन सबकी पोस्ट रीडिंग लिस्ट में मिलने लगेगी।

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