कब आओगे परदेशी
तुम फिर मेरे गांव में
कब तुमसे फिर मिलना होगा
ठंडी पीपल की छांव में
करती हूं मैं तेरा इंतजार
फिरूं बाबरी गलियों में
शायद तुम फिर दिख जाओ
कहीं गांव की गलियों में
हरे-भरे यह खेत खलिहान
सब उजड़े उजड़े दिखते हैं
यादों से कैसे धीर धरूं
नैनों से नीर बरसते हैं
आ जाओ अब तुम बिन
सब ठहरा ठहरा लगता है
चेहरे पर मुस्कान नहीं
उदासी का पहरा रहता है
कब आओगे परदेशी
तुम फिर से इन गलियों में
अब की में भी साथ चलूंगी
संग तेरे तेरी दुनिया में
***अनुराधा चौहान***
तुम फिर मेरे गांव में
कब तुमसे फिर मिलना होगा
ठंडी पीपल की छांव में
करती हूं मैं तेरा इंतजार
फिरूं बाबरी गलियों में
शायद तुम फिर दिख जाओ
कहीं गांव की गलियों में
हरे-भरे यह खेत खलिहान
सब उजड़े उजड़े दिखते हैं
यादों से कैसे धीर धरूं
नैनों से नीर बरसते हैं
आ जाओ अब तुम बिन
सब ठहरा ठहरा लगता है
चेहरे पर मुस्कान नहीं
उदासी का पहरा रहता है
कब आओगे परदेशी
तुम फिर से इन गलियों में
अब की में भी साथ चलूंगी
संग तेरे तेरी दुनिया में
***अनुराधा चौहान***
वाह बहुत सुन्दर विरह रचना!!
ReplyDeleteबाट जोहती रहती हूं
दिन रैन सांझ सवेरे में
चांद भी फीका लगता है
साया रात के घेरे में।
कब आवोगे परदेशी ।
बहुत बहुत आभार कुसुम जी बेहद खूबसूरत पंक्तियां आपकी
Deleteआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 25 सितम्बर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआपका बहुत बहुत आभार यशोदा जी
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना 🙏
ReplyDeleteवाहः बहुत खूबसूरत
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर रचना 👌
ReplyDeleteधन्यवाद अनिता जी
Deleteलम्बे इनज़ार का भाव दिखाई देता है इस रचना में.
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अनुराधा दी।
ReplyDeleteधन्यवाद ज्योती जी
Deleteवाह!!बहुत खूब!!
ReplyDeleteबहुत सुंदर सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteलाजवाब सुंदर अभिव्यक्ति....
ReplyDeleteधन्यवाद अंकित जी
Deleteकब फिर तुमसे मिलना होगा
ReplyDeleteठंडी पीपल छाँव में....
वाह!!!
बहुत सुन्दर...
आपका बहुत बहुत आभार सुधा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
Deleteबहुत खूब 👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद नीतू जी
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ReplyDeleteआ जाओ अब तुम बिन
सब ठहरा ठहरा लगता है
चेहरे पर मुस्कान नहीं
उदासी का पहरा रहता है....
बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति
धन्यवाद आदरणीय राजीव जी
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