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Thursday, September 13, 2018

कशमकश में दिन निकले

 
चार यहां पड़े
चार वहां पड़े
जिंदगी में लफड़े
हजार पड़े
इधर संभालूं
उधर बिगड़े
उधर संभालूं
इधर बिगड़े
इसी कशमकश में
जिंदगी हाथ से फिसले
मन रहे हरपल
सुकून की तलाश में
कहीं तो फुरसत
के कुछ पल निकलें
चाहत मेरी मैं
सबको खुश रखूं
फिर भी कहीं
बात बनें तो
कभी बिगड़े
रखूं चुन-चुनकर
खुशियों के पल
सब मुझ से खुश हो
इसी कशमकश में
दिन निकले
***अनुराधा चौहान***



15 comments:

  1. बहुत सुन्दर लिखा आप ने

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    1. बहुत सारा आभार नीतू जी

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  2. सच ज़िन्दगी कश्मकश भरी होती है बहुत
    उम्दा प्रस्तुति

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  3. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/09/87.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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    1. धन्यवाद आदरणीय राकेश कुमार जी मेरी रचना को मित्र मंडली में स्थान देने के लिए

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  4. ख़ूबसूरत और यथार्थ को चित्रित करती रचना...मालूम जान पड़ रहा कि मेरे मन की बात लिख डाली आपने

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए

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  5. धन्यवाद आदरणीय 🙏

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  6. बहुत सुन्दर लिखा आपने जिन्दगी की कशमोकश के बारे में.....

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी

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