चार यहां पड़े
चार वहां पड़े
जिंदगी में लफड़े
हजार पड़े
इधर संभालूं
उधर बिगड़े
उधर संभालूं
इधर बिगड़े
इसी कशमकश में
जिंदगी हाथ से फिसले
मन रहे हरपल
सुकून की तलाश में
कहीं तो फुरसत
के कुछ पल निकलें
चाहत मेरी मैं
सबको खुश रखूं
फिर भी कहीं
बात बनें तो
कभी बिगड़े
रखूं चुन-चुनकर
खुशियों के पल
सब मुझ से खुश हो
इसी कशमकश में
दिन निकले
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर लिखा आप ने
ReplyDeleteबहुत सारा आभार नीतू जी
Deleteसच ज़िन्दगी कश्मकश भरी होती है बहुत
ReplyDeleteउम्दा प्रस्तुति
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत बढिया..
ReplyDeleteधन्यवाद पम्मी जी
Deleteआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/09/87.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय राकेश कुमार जी मेरी रचना को मित्र मंडली में स्थान देने के लिए
Deleteख़ूबसूरत और यथार्थ को चित्रित करती रचना...मालूम जान पड़ रहा कि मेरे मन की बात लिख डाली आपने
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए
Deleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
ReplyDeleteबहुत सुन्दर लिखा आपने जिन्दगी की कशमोकश के बारे में.....
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद सुधा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय 🙏
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