कोई आकर्षण था
उसकी आंखों में
या कोई लगाव
उस अनदेखे चेहरे से
जब भी गुजरती मैं
उसकी गली से
खिड़की से झांकती
उसकी बैचेनी भरी आंखें
जैसे वो मेरा ही
इंतजार कर रहा हो
कोई राज छिपा था
उसकी आंखों में
अक्सर ठिठक जाते थे
मेरे कदम देखकर
उसकी आंखों को
कुछ कहना चाहती थी
पर कह नहीं पाई
कोई बंधन रोके था
अब जब नहीं दिखाई
देती मुझे उसकी आंखें
तो एक बैचेनी लिए
गुजरती हूं अब भी
उसकी गली से मैं
इस इंतजार में शायद
फिर नजर आ जाए
छिपकर देखती आंखें
तो इस बार पूछूंगी
उसकी बैचेनी का राज
***अनुराधा चौहान***
उसकी आंखों में
या कोई लगाव
उस अनदेखे चेहरे से
जब भी गुजरती मैं
उसकी गली से
खिड़की से झांकती
उसकी बैचेनी भरी आंखें
जैसे वो मेरा ही
इंतजार कर रहा हो
कोई राज छिपा था
उसकी आंखों में
अक्सर ठिठक जाते थे
मेरे कदम देखकर
उसकी आंखों को
कुछ कहना चाहती थी
पर कह नहीं पाई
कोई बंधन रोके था
अब जब नहीं दिखाई
देती मुझे उसकी आंखें
तो एक बैचेनी लिए
गुजरती हूं अब भी
उसकी गली से मैं
इस इंतजार में शायद
फिर नजर आ जाए
छिपकर देखती आंखें
तो इस बार पूछूंगी
उसकी बैचेनी का राज
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteराज तो आँखें कह चुकी..
ReplyDeleteसुंदर रचना.
बहुत सुन्दर रचना ...👌👌👌
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteबहुत सुन्दर रचना जी...
ReplyDeleteधन्यवाद प्रशांत जी
Deleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद शकुंतला जी
Deleteबहुत सुंदरता से मन के उदगारों को प्रेसित करती रचना ।
ReplyDeleteआंखों के राज, राज ना रहे
कहीं दिल में गहरे उतर गये ।
आभार आपका कुसुम जी आपकी सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है
Deleteसुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय राकेश जी
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