मेटती सुख क्यारियों से
व्याधियाँ लेकर कुदाली।
क्रोध में फुफकार भरती
जूझती हर एक डाली।
आज बंजर सी धरा कर
कष्ट के सब बीज बोते।
मारती लू जब थपेड़े
चैन के मधुमास खोते।
दंड कर्मों का दिलाने
काल तब करता दलाली।
मेटती सुख....
नीलिमा धूमिल हुई नभ
विष धुआँ आकार लेता।
रोग का फिर रूप देकर
विष वही उपहार देता।
काटते बोया हुआ सब
भाग्य के बन आज माली।
मेटती सुख....
व्याधियाँ नव रूप लेकर
बेल सी लिपती पड़ी हैं।
हाड़ की गठरी विजय का
युद्ध अंतिम फिर लड़ी है।
श्वास सट्टा हार बैठी
बोलती विधना निराली।
मेटती सुख....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️