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Tuesday, September 13, 2022

हमारी शान है हिन्दी


  हमारी शान है हिन्दी हमारा मान है हिन्दी।
बनी सदियों यही मुखिया सदा सम्मान है हिन्दी॥

सहज ही हिन्द की बोली सदा सबको लुभाती है।
यही आधार है संगीत जीवनदान है हिन्दी॥

चलो हठ छोड़कर सारे बनाए सिर मुकुट इसको।
हमारे भाल की बिन्दी हमारी आन है हिन्दी॥

बसी सबके हृदय कोमल पुरानी प्रीत सी बनकर। 
सदा यह देव की वाणी सुरीली तान है हिन्दी॥

बड़े ही प्रेम से जोड़े पुराने टूटते नाते।
हमें है गर्व हिन्दी पर हमारी शान है हिन्दी॥
अनुराधा चौहान'सुधी'

Friday, August 12, 2022

अभिमान है तिरंगा


 जग में सदैव ऊँचा अभिमान है तिरंगा।
चलना सभी उठाकर अभियान है तिरंगा॥

हर ओर गीत गूँजे जयघोष दे सुनाई।
हर द्वेष को मिटाता वरदान है तिरंगा॥

हर रंग में बसी है अपनी अलग कहानी।
जग में अनेकता की पहचान है तिरंगा॥

जब वीर वार करके अरि शीश को झुकाए।
जय घोष गुनगुनाता जयगान है तिरंगा॥

सच है नहीं कहानी कहते बड़े पुराने।
उन वीर भारती का सम्मान है तिरंगा॥

बलिदान से महकती धरती सदा हमारी।
रखना सदा बचाकर यह मान है तिरंगा॥

©® अनुराधा चौहान'सुधी'

Tuesday, June 28, 2022

मौन की यात्रा

मौन ढूँढे नव दुशाला

व्यंजना के फिर जड़ाऊ।

यत्न करके हारता मन

वर्ण खोए सब लुभाऊ।


खो गई जाने कहाँ पर

रस भरी अनमोल बूटी

चित्त में नोना लगा जब

भाव की हर भीत टूटी

नींव फिर से बाँधने मन

कल्पना ढूँढे टिकाऊ।

मौन ढूँढे नव........


भाव का पतझड़ लगा जब

मौन सावन भूलता है।

कागज़ों की नाव लेकर

निर्झरों को ढूँढता हैं।

रूठकर मधुमास कहता

बह रही पुरवा उबाऊ।

मौन ढूँढे नव........


वर्ण मिहिका बन चमकते

और पल में लोप होते।

साँझ ठिठके देहरी पर 

देख तम को बैठ सोते।

लेखनी भी ऊंघती सी 

मौन की यात्रा थकाऊ।।

मौन ढूँढे नव........

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*

Saturday, June 11, 2022

व्याधियाँ

 


मेटती सुख क्यारियों से

व्याधियाँ लेकर कुदाली।

क्रोध में फुफकार भरती

जूझती हर एक डाली।


आज बंजर सी धरा कर

कष्ट के सब बीज बोते।

मारती लू जब थपेड़े

चैन के मधुमास खोते।

दंड कर्मों का दिलाने

काल तब करता दलाली।

मेटती सुख....


नीलिमा धूमिल हुई नभ 

विष धुआँ आकार लेता।

रोग का फिर रूप देकर

विष वही उपहार देता।

काटते बोया हुआ सब

भाग्य के बन आज माली।

मेटती सुख....


व्याधियाँ नव रूप लेकर

बेल सी लिपती पड़ी हैं।

हाड़ की गठरी विजय का

युद्ध अंतिम फिर लड़ी है।

श्वास सट्टा हार बैठी

बोलती विधना निराली।

मेटती सुख....

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️

Saturday, June 4, 2022

तपती वसुंधरा


 मानव बना विनाशक बरती न सावधानी।
यह आपदा बनी अब लीले नदी निशानी॥

सूखे तड़ाग सारे धरती चटक रही है।
यह क्रोध भाव कैसा क्यों बैर नीति ठानी॥

तपती वसुंधरा भी अम्बर निहारती है।
बरसो जरा झमाझम आये घड़ी पुरानी॥

नव पौध रोप कर हम धरती बचा सकेंगे।
जीवन फले धरा पर यह रीत भी निभानी॥

नयना निहारते है प्यासा उड़े पपीहा।
छाए घना अँधेरा बहती पवन सुहानी॥

शीतल समीर छेड़े संगीत जब धरा पर।
घिरती घटा घनेरी अंतस समेट पानी॥

मन झूमते सुधी फिर मुख से हटे निराशा।
बूँदे गिरे टपाटप कहती नई कहानी॥
अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार

जीवन चक्र

चमक रहा अम्बर पर नवीन तारा है।
कहीं मिटा धरती से किया किनारा है॥

घटे बढ़े यह जीवन सदैव ऐसे ही।
मरे जिए अरु जन्में प्रवास सारा है॥

प्रताड़ना इस सच की सहे सदा मानव।
विछोह कंटक जैसा सहे बिचारा है॥

अधीर हो मन बैठा पुकारता उसको।
चला गया तन से जो अपार प्यारा है॥

समेट लो अब अंतस प्रकाश यह अपने।
चले चक्र नव प्रभु से प्रबंध न्यारा है।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*

Wednesday, June 1, 2022

प्रहरी हमारे

ऊँचा लिए तिरंगा हम थाम के चलेंगे।
यह मान देश का है हम शान से कहेंगे॥

वीरों भरी धरा पर जयघोष गूँजता जब।
झुकता नहीं हिमालय हम भी नहीं झुकेंगे॥

हो रात भी घनेरी अरि घात हो लगाए।
जयघोष भारती का सुनकर सदा डरेंगे॥ 

माता धरा हमारी हम प्राण वार देंगे।
तन से लहू बहे पर हम वार भी करेंगे॥

सुन लो वसुंधरा के सच्चे सपूत सैनिक।
यह धूप में खड़े हो हर वार भी सहेंगे॥

कितनी घनी घटा हो या चंचला डराए।
प्रहरी बने हमारे जय भारती कहेंगे।

कहती सुधी चलें जब यह ओढ़ कर तिरंगा।
तब देख यह विदाई बस अश्रु ही बहेंगे।

*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

Monday, May 30, 2022

ओस के मोती


जो सुने गीत हम चले आये।
बाँधकर प्रीत साथ में लाए॥

दो घड़ी पास में जरा बैठो।
बीतती रात रागिनी गाये॥

मौन हो आज पायलें बैठी।
चूड़ियाँ भी न भेद बतलाये॥

चाँद भी रूप ले सजीला सा।
झील को देख आज इतराये॥

छेड़ते राग पात पीपल भी।
मोहिनी गंध ले खुशी छाये॥

ज्यों खिली भोर तो कली फूली।
देखकर रूप भृंग इठलाये॥

तू सुधी बीन ओस के मोती 
धूप के ताप में न उड़ जाये॥
*अनुराधा चौहान'सुधी'✍️*
चित्र गूगल से साभार

Monday, May 9, 2022

कोलाहल हृदय का


 स्वप्न सारे टूट बिखरे
ठेव मन पर जोर लागी‌।
रात भी ढलती रही फिर  
बैठ पलकों पे अभागी।

आस के पग डगमगाते
थक कर न रुक जाए कहीं ।
थाम ले छड़ी चेतना की
कोई शिखर मुश्किल नहीं।
देख कोलाहल हृदय का
हो रहा मन वीतरागी।
स्वप्न सारे....

काल की गति तेज होती
जो रुका वो हारता है।
लक्ष्य को आलस की बेदी
वो हमेशा वारता है।
सत्य आँखें खोलता जब
फिर भ्रमित सी पीर जागी।
स्वप्न सारे....

ज्योति जीवन की बुझाने
तम घनेरा हँस रहा है।
कष्ट यह निर्झर बना फिर
नयन से चुपके बहा है।
साँस अटकी देखकर तब
नींद पलकें छोड़ भागी।
स्वप्न सारे....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

Friday, March 4, 2022

लोभ


काँपते हैं देख कानन
मानवों की भीड़ को।
रोपते तरु काट नित वो
पत्थरों के चीड़ को।

 नित नए आकार लेता   
लोभ का गहरा कुआँ।
घुट रही हर श्वास धीरे
डस रहा जहरी धुआँ।
हँस रहे हैं कर्म दूषित
देख बढ़ती बीड़ को।
काँपते हैं देख....

 भ्रष्ट चलकर झूठ के पथ
नित नई सीढ़ी चढ़े।
धर्म आहत सा पड़ा अब
पाप पर्वत सा बढ़े।
सत्य लड़ने को पुकारे
घटती हुई छीड़ को।
काँपते हैं देख....

छटपटाती श्वास तन में
बाग पथरीले पड़ी।
हँस रही अट्टालिकाएँ
हाल पर उनके खड़ी।
बन पखेरू प्राण उड़ते
जा रहे तज नीड़ को।
काँपते हैं देख....

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
छीड़-मनुष्य के जमघट की कमी।
बीड़- एक पर एक रखे सिक्कों का थाक।


Thursday, February 10, 2022

ज़िंदगी सस्ती नहीं


 ज़िंदगी को कोई यूँ लानत न दो,
जन्मदाता पिता की अमानत है यह।
खून से सींचकर माँ पाले इसे,
 रात भर जागकर वो संभाले इसे।

दर्द सहकर भी दुख तुम पर आने न दे,
भूख सहकर हर घड़ी पेट तेरा भरें।
लड़खड़ाए कदम जो कभी गिरने न दें,
तुम सदा खुश रहो बस दुआ यह करें।

उम्र थोड़ी बढ़ी होश खोने लगे,
द्वेष के बीज हृदय में बोने लगे।
ताक पर जा रखे जो मिले संस्कार,
भूले माता-पिता भूले अपनों का प्यार।

ठेस थोड़ी लगी दोषी दुनिया बनी,
जीत की चाह में राह उल्टी चुनी।
हार से सीख लेना जरूरी नहीं,
बात समझी नहीं जो सबने कही।

ओढ़ अवसाद की चादर छुपने लगे,
ज़िंदगी को बद्दुआ समझने लगे।
भूले कैसे आसान नहीं ज़िंदगी,
कर्म से ही सदा महकती ज़िंदगी।

एक पल में मिटा इसको तुम सो गए
ज़ख्म नासूर से अपनों को दे गए
इतनी सस्ती नहीं जो मिली ज़िंदगी
कितनी कड़ियाँ जुड़ी तो बनी ज़िंदगी।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार


भाव की बिखरी कड़ी


शब्द के जाले उलझकर
भाव की बिखरी कड़ी।
लेखनी फिर मूक होकर
बीनती बिखरी लड़ी।

कौन कोने जा छुपे हैं
वर्ण सारे रूठकर।
बुन रही हूँ बैठ माला
पुष्प सम फिर गूँथकर।
टूटता हर बार धागा
भावना की ले झड़ी।
शब्द के जाले...

लेखनी की नींद गहरी
आज थककर सो रही।
गीत आहत से पड़े सब
प्रीत सपने बो रही।
भाव ने क्रंदन मचाया
खिन्न कविता रो पड़ी।
शब्द के जाले...

मौन मन में मूक दर्शक
आज रस सारे बने।
रंग भी बेरंग होकर
बात पर अपनी तने।
भावनाएं सोचती फिर
राग छलके किस घड़ी।
शब्द के जाले...
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

Friday, January 28, 2022

भूख


भूख पेट की बढ़ती जाती
अंतड़ियाँ दुखड़ा रोती।
धनवानों की बैठ तिजोरी
हँस रहे हीरा मोती।

पेट कसे निर्धन चुप होकर
ढूँढ रहा सूखी रोटी।
भूख प्राण की बलि ले हँसती
कुक्कुर नोच रहा बोटी।
देख पीर सन्नाटे छुपकर
मानवता भी चुप सोती।
भूख पेट की....

साँझ ढले फिर खाली हाँडी
चूल्हे पर चढ़ी चिढ़ाती।
खाली बर्तन करछी घूमे
बच्चों का मन बहलाती।
नन्ही आँखें प्रश्न पूछती
आशा फिर झूठी होती।
भूख पेट की....

शीत खड़ी दरवाजे पर जब
सन्न सन्न सोटे मारे
नन्हे थर-थर काँप उठे फिर
रातों में बदन उघारे।
स्वप्न रजाई हर बार सुना
तन ढाँक रही माँ धोती।
भूख पेट की....

©® अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

Monday, January 24, 2022

मिट रही संवेदनाएं


 प्रीत रोकर मौन मन से
कह रही अपनी कथाएं।
छल-कपट की क्यारियों में
सूखती हैं भावनाएं।

वेदना व्याकुल हुई पथ
छटपटाती सी पड़ी है।
दर्प डूबी लालसाएं
शूल सी सीने अड़ी है।
रस बिना अब रंग खोती
प्रेम की सब व्यंजनाएं।
प्रीत रोकर.....

बेल सी बढ़ती कलुषता
चेतना ही लुप्त करती।
द्वंद अंतस में बढ़े फिर
सत्यता को सुप्त करती।
बोझ मिथ्या मन बढ़ा तो
मिट रही संवेदनाएं।
प्रीत रोकर.....

हृदय पट को मूँदकर ही
नेह सागर मौन होता।
बैर की बढ़ती तपिश में
चैन से अब कौन सोता।
स्वप्न आहत हो बिलखते 
आज सहकर वर्जनाएं।
प्रीत रोकर.....
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, January 19, 2022

ज़िंदगी अभिनय नहीं


 ज़िंदगी अभिनय नहीं
यह सत्य तुम पहचान लो।
कर्म से पहचान होती
यह बात सच्ची जान लो।

ख्वाहिशों का बोझ सिर पे
काम कुछ करना नहीं है।
स्वप्न में बीने रुपैया
दाम कुछ भरना नहीं है।
डींग भरता जो हमेशा
शेखचिल्ली वो मान लो।
ज़िंदगी अभिनय......

आँखों में चश्मा काला
धूप हल्की बोलते हैं।
हाथ खीसे में दबाए
शान में बस डोलते हैं।
मेहनत करती नाम रोशन
सत्यता यह जान लो
ज़िंदगी अभिनय..........

भागती गाड़ी समय की
पकड़े वही जीतता है।
आलस्य की दौड़ चलकर
राह कंटक सींचता है।
जगमगाना हो दीप सा
कर्म करने की ठान लो।
ज़िंदगी अभिनय.........
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार

Thursday, January 13, 2022

साँझ की देहरी


 जल गई आशा चिता में
ढूँढते अवशेष सारे।
हँस रहा है बैर बैठा
प्रीत चुन-चुन रोज मारे।

चल रही निर्मम पवन भी
विष धुआँ आकार लेता।
भस्म बन नयना कुरेदे
हृदय गहरे घात देता।
मौन भी चित्कार करता
देख सहमे चाँद तारे।
जल गई आशा .......

अश्रु के मोती समेटे
विरह सागर बह रहा है।
गूँथने विश्वास बैठा
नेह धागा जल रहा है।
पथ खड़ी हो वेदना फिर
ढूँढती नूतन सहारे।
जल गई आशा .......

साँझ की देहरी बैठी
रैन पीड़ा से जड़ी है।
काल की लकड़ी पकड़कर
आस नन्ही-सी खड़ी है।
कह रहा यह देख अम्बर
अब प्रलय से जीव हारे।
जल गई आशा .......
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार

Monday, January 10, 2022

मुस्कुराती भोर


मुस्कुराती भोर आकर
जब धरा का मुख निहारे।
लौटती लेकर निशा तब
साथ अपने चाँद तारे।

गूँजते आँगन हँसी से
बर्तनों की थाप सुनकर।
अरगनी पर सूखते फिर
स्वप्न नूतन नित्य बुनकर।
पायलों की छनछनाहट
गुनगुना आँगन बुहारे।।
मुस्कुराती भोर.....

आस पंछी सी चहकती
देख खिलता नव सबेरा।
धूप का टुकड़ा खिसक कर
पोंछता मन का अँधेरा।
माँग सिंदूरी लजाकर
रूप दर्पण में निहारे।
मुस्कुराती भोर.....

मुस्कुराती डालियाँ जब
प्रीत पुरवा खिलखिलाती।
सज उठी वेणी कली फिर
लग रही जैसे लजाती।
चूड़ियों की खनखनाहट
नाम बस पी का पुकारे।
मुस्कुराती भोर......
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित

चित्र गूगल से साभार