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Thursday, May 28, 2020

बूँद-बूँद जीवन

बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।
नाम गूँजता जग में उसका
कारज जग हित करता।

गले लगाना है अपनों को
उचित नहीं ये दंगा।
पापों को हरती रहती है
शीतल जल से गंगा।
वीरों की ये पावन धरती
थर-थर है शत्रु डरता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।

श्वेत बहे माथे से जिसके
धन की कीमत जानी।
चोरी-चुपके छीना-झपटी
आलस की मनमानी।
महल सदा अमीरों के लिए
श्रमिक ही गढ़ा करता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।

पुष्प मंड़राती मधु मक्खी
बूँद-बूँद रस को पीती।
शहद मधुर बनाने के लिए
नित मरती औ जीती।
शौर्य बड़े साहस के कारज
बीज एक लघु करता।
बूँद-बूँद जब जल की गिरती
घड़ा एक नित भरता‌।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

जीवन का आधार

भाव हृदय का बहता झरना
जीवन का आधार लिये।
जीवन पथ के चलते राही
हृदय प्रीत साकार किये।

हृदय बसा आशा की किरणें 
मन उजियारा करना है।
जीवन में आए कोई संकट
उससे कभी न डरना है।
सूने अँधियारे-से पथ पर
आस दीप जलाकर जिये।
भाव हृदय का बहता झरना
जीवन का आधार लिये।

सच्चाई की राह पकड़ना
कपट हृदय में मत रखना।
सरगम के सुर महके हरदम
स्वाद प्रेम का मिल चखना।
चाक चले जब गीली मिट्टी
लेती ज्यूँ आकार प्रिये
भाव हृदय का बहता झरना
जीवन का आधार लिये।

प्रीत घड़ा साँचे में ढलकर
नित्य समय की आँच तपा।
सुखमय बीतेंगे दिन सबके
राम नाम का सार जपा।
इन बातों को गाँठ बाँध लो
जीवन हो साकार प्रिये।
भाव हृदय का बहता झरना
जीवन का आधार लिये।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, May 26, 2020

राज नये गहरे-गहरे

भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे-गहरे।
अंतर्मन में जीवन के कुछ
यादों के पल आ ठहरे।

धूप खिली है सोंधी-सोंधी
भीतर मन के अँधियारा।
पुरवाई छूकर के कहती
मौसम आया है प्यारा।
आज हटा दो इन आँखों से
शंकाओं के सब पहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।

सागर-सा मन डोल रहा है
भाव डिगे लहरों जैसे।
सूने तट के आज उकेरी
तेरी छवि जाने कैसे।
बोल घरौंदा नित कुछ कहता
स्वप्न रात ठहरे ठहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।

अँधेरे से डर नहीं जाना
साँझ ढले सूरज बोला।
रैन ढले ही भोर सुहानी
आशा का भरती झोला।
पुष्प खिलेंगे मन बगिया में
सुंदर महकते सुनहरे।
भावों के पट खोल रहे हैं
राज नये गहरे गहरे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से

Saturday, May 23, 2020

राह काँटो भरी

बड़े जतन से भरी हुई थी
छलक पड़ी सुख गगरी।
कदम-कदम पे विपदा घेरे
राह है काँटों भरी।

छिन गया है सुख-चैन सारा
फिर रहे बेसहारा।
भूख-प्यास से व्याकुल होते
मिला न कहीं सहारा।
रोग कोरोना बढ़ रहा है
देख आत्मा भय भरी।
बड़े जतन से भरी हुई थी
छलक पड़ी सुख गगरी।

पग में छाले बहुत पड़े हैं
दूर है मंजिल अभी।
बहता लहु दिल देख रो रहा
छोड़ेंगे न घर कभी।
सोच मजदूर चले अकेले 
अँखियाँ नीर भर डरी।
बड़े जतन से भरी हुई थी
छलक पड़ी सुख गगरी।

रेत पर बने पदचिह्न सारे
कह रहे हैं कहानी।
कुचलते हैं सपने सुनहरे 
कैसी ये मनमानी।
नौनिहाल बेदम से चलते
प्राण परवाह न करी।
बड़े जतन से भरी हुई थी
छलक पड़ी सुख गगरी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, May 20, 2020

कोरोना हारे भारत जीते

पीने की खातिर मधुशाला
तुम नियम सारे भूल गए
वो जान बचाने की खातिर
अपने घर को भूल गए
कुछ तो सोचा होता तुमने
जो दिन-रात पहरा देते हैं
तुम स्वस्थ रहो अपने घर में
वो धूप में निश दिन जलते 
स्वच्छ रहे गलियाँ सारी
न हो किसी को यह बीमारी
वो जान हथेली पर लेकर
दिन-रात सफाई करते हैं।
जब रोग का दर्द सताने लगे
वो नर्म हाथों से सहलाती हैं
बच्चों की छवि आँखों में बसी 
फिर भी हमको बहलाती हैं
वो भूले अपनी खुशियों को
घर के खाने की खुशबू को
वो धर्म निभाते हुए हरपल
जान पे अपनी खेल रहे
क्यों देते उनको त्रास सभी
क्यों पत्थर उनपे उठाते हो
वो मानवता के देव पुरुष
कोरोना से टकरा रहे हैं
जो हाथ तुम्हारी ढाल बने
उन हाथों पर ही वार किए
कुछ तो सोचो कुछ शरम करो
मत अपनी जान के शत्रु बनो
कामकाज जो बंद हुआ
उसका कोई राज न गहरा है
कोरोना हमको डस न सके
इसलिए ही बढ़ता पहरा है
जहरीला है यह रोग बड़ा
मिलती नहीं कहीं कोई दवा
कोरोना योद्धा संग मिलकर
यह जंग हमें भी लड़ना है
कोरोना भागे भारत जीते
यह संकल्प हमें उठाना है
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

उर्मियाँ घूँघट हटाकर

प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
पीर सूखे पात जैसी
बात ये कहती सही है।

महकती इन क्यारियों में
गीत गूँजें मधुमास के।
कह रहीं कलियाँ चटक के
सुर गुनगुना ले रास के।
नयन बहती नीर धारा
आस को लेकर बही है।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।

कूक कोयल भी सुनाके
संदेश हृदय दे जाती।
पुरवा आँचल हौले से
आँगन आके लहराती।
उर्मियाँ घूँघट हटाकर
फिर मचलती आ रही हैं।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।

चीरती है बादलों को
दामिनी करती है शोर।
मेघ काले गर्जना सुन
झूमते उपवन में मोर।
विरह के अनमोल धागे
रागिनी बुनती रही है।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, May 12, 2020

सात वचन

सात वचन जो आज लिए हैं
साथी भूल न जाना।
मुश्किल हो जीवन का रास्ता
हरपल साथ निभाना।

मेरी आँखों का बन काजल
साथी सदा दमकना।
खनके चूड़ी पायल कँगना 
बिंदिया बन चमकना।
भर चुटकी सिंदूर हाथ में
मेरी माँग सजाना।
सात वचन जो आज लिए हैं
साथी भूल न जाना।

पग कितना भी पथरीला हो
हरपल साथ चलूँगी।
छोडूँगी न हाथ में साजन
छाया बनी रहूँगी।
खुशियों से भर दूँगी झोली
ये दिल नहीं दुखाना।
सात वचन जो आज लिए हैं
साथी भूल न जाना।

छूट गया बाबुल का आँगन
छूटी सखियाँ सारी।
माता का आँचल भी छूटा।
रोती बहना प्यारी।
भाई संग बीते दिनों को
होगा नहीं भुलाना।
सात वचन जो आज लिए हैं
साथी भूल न जाना।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

गुड़िया रानी

मीठे सुर में लोरी गाकर
माँ हौले से मुस्कायेगी।
प्यारी-सी ये गुड़िया रानी
झट झूले में सो जायेगी।

मीठी-मीठी बातें करती
मैया उसको बहलाती है।
सोजा मेरी गुडिया रानी
माँ लोरी सदा सुनाती है।
चन्दा के झूले पर चढ़कर
वही निंदिया फिर आयेगी।
मीठे सुर में लोरी गाकर
माँ हौले से मुस्कायेगी।

ब्याह रचाने गुड्डा राजा
गुड़िया को लेने आयेगा।
जल्दी सोजा मेरी प्यारी
चन्दा रूठ चला जायेगा।
तेरी प्यारी आँखों पे जब
कुछ सपने रैन सजायेगी
मीठे सुर में लोरी गाकर
माँ हौले से मुस्कायेगी।

छोटे-छोटे पैरों में फिर
आँगन में आकर दौड़ेगी।
गोदी के झूले में सोकर 
माता का आँचल छोडेगी‌।
धीमे-धीमे चलके फिर से
भोर सुहानी आयेगी।
मीठे सुर में लोरी गाकर
माँ हौले से मुस्कायेगी।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Thursday, May 7, 2020

ख़ुशबू यादें

चुभी हृदय में बीती बातें
शूल बनी अंतस में जाकर।
शोर मचाती लगी जागने
 नीर नयन से पीर बहाकर।

छनकी चूड़ी महका गजरा
आँखों में आ ठहरा सपना‌।
पलभर को ठिठकी थी धड़कन
घर आया है कोई अपना।
कटी प्याज सी खुशबू यादें
ठहर गई आँखों में आकर।
चुभी हृदय में बीती बातें
शूल बनी अंतस में जाकर।

ढलती साँझ निशा गहराती
आँखों का काजल बहता है।
चाँद गगन में ढलते-ढलते
तेरी ही बातें कहता है। 
खुली पोटली निकली यादें
मन के सोए भाव जगाकर।
चुभी हृदय में बीती बातें
शूल बनी अंतस में जाकर।

महक उठी चंपे की कलियाँ
मीठे मन अहसास बहे थे।
खोल पोटली रही देखती
 सपने पर में सभी ढहे थे।
हर धड़कन हरपल ये कहती
भूल गया परदेशी जाकर।
चुभी हृदय में बीती बातें
शूल बनी अंतस में जाकर।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Sunday, May 3, 2020

मय के प्याले

जमा-पूंजी घटने लगी है
नौकरी के पड़ते लाले
सरकारी आदेश से महके
घर में मय के प्याले

किसी की आँखें नम हुई
कुछ खुशियों से चहकी
खाली बर्तन बोल रहे हैं
अब घर में मदिरा महकी

रोटी की दरकार यहाँ पर
पर खुल रहीं मधुशाला
काम-काज सब ठप्प हुए
जड़ गया उनपे ताला

काँधे पे बैठाए बालक
पैदल ही घर को भागे
कोई दीन की सुध नहीं लेता
भटक रहे हैं अभागे

आज समस्या बनी महामारी
दवा कोई काम न आती
काल डस रहा मानव को
विपदा सबको ही डराती

खोलो तो सब ताले खोलो
क्यों खोली है मधुशाला
घर-घर शांति भंग कराने
क्यों पिलाना विष का प्याला

हँसी-खुशी से जीवन चलता
संग रूखी-सूखी खाकर
मय के प्याले छलकेंगे
तो बची पूँजी भी गँवाकर

घर-घर होगी महाभारत
जब रोटी न होगी थाली में
बालक के लिए दूध न होगा
मदिरा छलकेगी प्याली में

गुत्थमगुत्था होते सब
पहले मेरी बारी
दो फुट दूरी के नियम भूले
बढ़ा रहे हैं बीमारी
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार