जमा-पूंजी घटने लगी है
नौकरी के पड़ते लाले
सरकारी आदेश से महके
घर में मय के प्याले
किसी की आँखें नम हुई
कुछ खुशियों से चहकी
खाली बर्तन बोल रहे हैं
अब घर में मदिरा महकी
रोटी की दरकार यहाँ पर
पर खुल रहीं मधुशाला
काम-काज सब ठप्प हुए
जड़ गया उनपे ताला
काँधे पे बैठाए बालक
पैदल ही घर को भागे
कोई दीन की सुध नहीं लेता
भटक रहे हैं अभागे
आज समस्या बनी महामारी
दवा कोई काम न आती
काल डस रहा मानव को
विपदा सबको ही डराती
खोलो तो सब ताले खोलो
क्यों खोली है मधुशाला
घर-घर शांति भंग कराने
क्यों पिलाना विष का प्याला
हँसी-खुशी से जीवन चलता
संग रूखी-सूखी खाकर
मय के प्याले छलकेंगे
तो बची पूँजी भी गँवाकर
घर-घर होगी महाभारत
जब रोटी न होगी थाली में
बालक के लिए दूध न होगा
मदिरा छलकेगी प्याली में
गुत्थमगुत्था होते सब
पहले मेरी बारी
दो फुट दूरी के नियम भूले
बढ़ा रहे हैं बीमारी
पहले मेरी बारी
दो फुट दूरी के नियम भूले
बढ़ा रहे हैं बीमारी
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
विचारणीय
ReplyDeleteWell said .The words r very meaningful.
ReplyDeleteजी आभार
Deleteअफसोसजनक.....पर शायद सरकार की भी मजबूरी🙏🙏🙏जाने कब लोग समझेंगे???
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteवाह !बेहतरीन अभिव्यक्ति प्रिय सखी 👌
ReplyDeleteसादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05 -5 -2020 ) को "कर दिया क्या आपने" (चर्चा अंक 3692) पर भी होगी, आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
हार्दिक आभार सखी
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