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Tuesday, May 25, 2021

वेदना का शोर


भोर को रूठा हुआ-सा
देख सूरज ढल गया।
मौन चंदा बादलों में
क्षीण होकर छुप गया।

याद की गठरी गिरी फिर
स्वप्न सिसके सब निकल।
मिट गया शृंगार जब
रोई दुल्हनिया विकल।
अर्थी उठी जब आस की
अंतर्मन पिघल गया।
मौन चंदा..

लौ मचलती दीप की फिर
पूछती है कहानी।
पीर कैसी मन बसी है
बह रहा नयन पानी।
छीनकर क्यों आज खुशियाँ
मीत मन का खो गया।
मौन चंदा..

वेदना फिर शोर करती
बुझ गया मन का दीप ।
अंतस उमड़ती लहर में
तट लगी यादें सीप
हाथ मेहंदी रो रही
वो चिता में जल गया।
मौन चंदा..
©® अनुराधा चौहान'सुधी'
चित्र गूगल से साभार

Monday, May 24, 2021

मुरझाईं फिजाएं


 

पूँछता है मौन अम्बर बोल तांडव थाप क्यों।

लीलती है मौत खुशियाँ हर गली में आज क्यों।


रौनकें फीकी हुई क्यों आरज़ू मरती दिखे।

साँस का सौदा मचाए यह रुदन का साज क्यों।


बढ़ रही मायूसियों के कौन रोके काफिले,

आज मानव आ रहा इंसानियत से बाज क्यों।


चीखती खामोशियों में गुल धुनें हैं प्यार की।

बंद कमरों में दफन हैं धड़कनों के साज क्यों।


आज मुरझाई फिजाएं झूमती गाती नहीं।

बोल दो मन की व्यथा सबसे छुपाती राज क्यों।

©® अनुराधा चौहान'सुधी'✍️

चित्र गूगल से साभार


Wednesday, May 12, 2021

जहरी हवा


 काल भीषण रूप धरकर
आज धरती पे रुका।
मौत का तांडव मचा फिर
दंड से मानव ठुका।

हो गई जहरी हवा अब
बाँध चले मुखपट्टी।
पीर ये कैसे भुलाएं 
दे रही याद खट्टी।
ले रहा प्रभु जब परीक्षा
देख लाठी क्यों लुका।
काल भीषण.....

छोड़ दो झगड़े पुराने
आज मानवता कहे।
कष्ट के इन बादलों को
एक जुट होकर सहे।
सामने सच को खड़ा कर
जो कहीं पीछे दुका।
काल भीषण.....

काम सारे ही गलत कर
मौत की चौखट खड़े।
नोंच आभूषण धरा के
शूल ही पथ में जड़े।
रो रही हैं बेड़ियाँ अब
मस्त हाथी जा चुका।
काल भीषण.....
©®अनुराधा चौहान'सुधी' ✍️
चित्र गूगल से साभार

Sunday, May 9, 2021

माँ


 माँ 
तेरे लिए
कुछ लिखने चलूँ
तो शब्द कम पड़ जाते हैं
माँ इस 
छोटे अल्फाज़ में
सारे सुख 
सिमट जाते है
माँ तू खुद में पूर्ण है
धूप में
शीतल छाँव है
कष्ट में 
मखमली अहसास है
माँ 
तुझसे ही हर दिन है
मेरी 
हर इक श्वास है
तेरे लिए कोई 
ख़ास दिन नहीं
पर माँ तुझसे ही 
मेरा
हर दिन ख़ास है
अनुराधा चौहान'सुधी'✍️
चित्र गूगल से साभार