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Friday, October 12, 2018

सिमट रहे सबके मन

कोई धुन बनाऊं
या गीत कोई गाऊं
पर सुकून के पल
कहां से लाऊं
कोई कविता लिखूं
या कोई गजल
मन बैचेन रहे हरपल
रहूं धरती पर
देखूं आसमान
पर शांति के पल
नहीं आसपास
दिखावे के दंभ में
डूबा संसार
अपनों के लिए अपनों का
गुम होता प्यार
मोबाइल से चलते
अब सारे रिश्ते
पास होकर नहीं
रहते पास अपने
हकीकत में दुनिया
सिर्फ अपने में ही खोई
फसा मोबाइल में बेचारा मन
लगा जीवन में दीमक बन
सिमट रहें हैं सबके मन
कैसे कोई धुन बने सरगम
***अनुराधा चौहान***

18 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 14 अक्टूबर 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. बहुत बहुत आभार यशोदा जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  2. मन को सुकून सा पहुँचाती सुन्दर रचना ...

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  3. वाहः
    बहुत उम्दा

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  4. बेहतरीन रचना सखी 👌

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  5. दिखावे के दंभ में
    डूबा संसार
    अपनों के लिए अपनों का
    गुम होता प्यार

    सुंदर रचना, सचमुच दिखावा हर संबधों पर भारी हो चला है

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  6. अनुराधा जी. इस मशीन-युग और तकनीकी प्रगति का एक उजला पहलू भी है. अपनी यह व्यथा आप इन्टरनेट के माध्यम से हम तक पहुंचा रही हैं. आप सुकून के साथ कोई धुन, कोई सरगम बनाइए और इन्टरनेट के माध्यम से तुरंत हम तक पहुंचाइए और फ़ौरन उस पर हमारी तरफ़ से दाद भी पाइए.

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  7. समसामयिक सटीक चिंतन...संचार क्रांति हम इंसानों की सहूलियत के लिए है पर हम इसमें अपना अस्तित्व ही गुम कर रहे है....सार्थक चिंतन बहुत अच्छी रचना अनुराधा जी।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  8. सही कहा आपने सखी सुंदर सटीक, इन गेजेट्स के बहुत फायदे हैं पर इन निर्जीव व्यवस्थाओं ने सजीव मानवीय संवेदनाओं को बिल्कुल निर्जीव कर दिया, खोखला और ऊपरी दिखा।
    यथार्थ दर्शन करवाती सार्थक रचना ।

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    1. धन्यवाद सखी आपकी सुंदर और सार्थक प्रतिक्रिया हमेशा मेरा उत्साह बढ़ाती है

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