जिद है छूनी ऊंचाईयाँ
मुश्किलों से फिर क्यों डरना
मन में हौंसला हो
संघर्ष की राह निकलना
खुद चलकर आए मंजिल
यह मुमकिन नहीं होता
मार कर ही हथौड़ा
पत्थर को तोड़ना है
हवा में किले बनाकर
नहीं जिंदगी संवरती
कुछ पाने की चाह है तो
सुख पीछे छोड़ना है
गर हौंसला बुलंद हो
फिर कदम नहीं रुकते
जीवन की आंधियों में
दिये कर्म के ही जलते
लड़ कर चुनौतियों से
पर्वत से राह निकलती
मन में हौंसला हो
जीने की चाह निकलती
***अनुराधा चौहान***
मुश्किलों से फिर क्यों डरना
मन में हौंसला हो
संघर्ष की राह निकलना
खुद चलकर आए मंजिल
यह मुमकिन नहीं होता
मार कर ही हथौड़ा
पत्थर को तोड़ना है
हवा में किले बनाकर
नहीं जिंदगी संवरती
कुछ पाने की चाह है तो
सुख पीछे छोड़ना है
गर हौंसला बुलंद हो
फिर कदम नहीं रुकते
जीवन की आंधियों में
दिये कर्म के ही जलते
लड़ कर चुनौतियों से
पर्वत से राह निकलती
मन में हौंसला हो
जीने की चाह निकलती
***अनुराधा चौहान***
बहुत सुन्दर रचना 👌👌
ReplyDeleteसुंदर शब्दों से सुंदर कविता बुनी है बधाई
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए
Deleteवाह सुन्दर रचना
ReplyDeleteधन्यवाद रितु जी
Deleteवाह ! हौसलों को पर्वाज़ देती ख़ूबसूरत रचना।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय रविंद्र जी
DeleteVery nice anuji
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका
Deleteबहुत ही सुन्दर कविता सखी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अनिता जी
Deleteबहुत सुन्दर
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय सतीश जी
Deleteवाहः लाजवाब रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय लोकेश जी
Deleteवाह!लाजवाब रचना
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय अंकित जी
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