मेरी अश्कों के मोती
बहते हैं बार-बार
तुझ संग प्रीत लगाकर
मेरे दिल का है बुरा हाल
पुकारता है दिल तुझे
एक बार आकर मिल मुझे
एक बार आकर मिल मुझे
देख ज़नाजा अपने प्यार का
टूट कर बिखरे सपनों का
झूठे वादे और इकरार का
बिखरती हुईं साँसों को
अब भी है तेरा इंतज़ार
मचल रही है रूह जिस्म से
साथ छोड़ जाने को है बेकरार
बेबसी के बादल अब गहराने लगे
आकर एक बार मुझे तू लगाले गले
जिस्म से रूह अब होती जुदा़
आ बता दे मुझे हुई क्या खता
तू मिला न गिला है मुझे जिंदगी से
दूर होती हूँ अब मैं तेरी जिंदगी से
अश्क भी सूखते जिस्म भी छूटता
अब तुझ से यह नाता यहीं टूटता
प्रीत मेरी थी मेरे साथ ही मिट जाएगी
जान जाने पर तुझे मेरी याद आएगी
***अनुराधा चौहान***
सुन्दर सखी
ReplyDeleteआपका आभार सखी
Deleteइश्क़ के खेल वही जनता है जो इसमें पड़ता है ...
ReplyDeleteअच्छी रचना
धन्यवाद आदरणीय दिगंबर जी
Deleteतौबा इश्क न करना कोई ये हाल बुरा करता है
ReplyDeleteअच्छे भले इंसान को मरीज बना देता है।
वाह उम्दा रचना सखी।
लाज़वाब
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी
Deleteप्रीत मेरी थी मेरे साथ ही मिट जाएगी
ReplyDeleteजान जाने पर तुझे मेरी याद आएगी
बहुत खूब
क्या अंदाज़े बयां हैं
धन्यवाद आदरणीय जफर जी
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