रस बिना जीवन की
क्या कल्पना करे कोई
रस नहीं तो जीवन सबका
पत्थर सा होता नीरस
इंसान होते बुत जैसे
फूल बिना रस के कंटीले
फलों का सृजन न होता
बंजर होता धरा का सीना
मुस्कान कहीं दिखती नहीं
न सुर होता न सरगम बनती
सोचो कैसी होती ज़िंदगी
रस ही जीवन संसार का
जीवन के रंग भी हैं रस से
फूलों के रस से ले मधुकर
मधुवन सींचते मधुरस से
मधुर रस से भरे
फल-फूलों से लदी-फदी
झूमती वृक्षों की डालियाँ
जीवन झूमे विभिन्न रसो से
प्रेम रस में सराबोर हो
सजनी साजन के मन भाए
कान्हा की प्रीत में झूमे
गोपियाँ गोकुल में रास रचाएं
वियोग में डूबी मीरा
गाती विरह की वेदना
किलकारी शिशु की सुन
अमृत रस-सा ममत्व
उमड़ता सीने में
दादाजी के किस्से सुनकर
बचपन हँसता बगीचे में
भांति-भांति के रस लिए
वसुधा जीवन में प्राण भरे
रस बिना जीवन नीरस
रसमय जीवन से प्रकृति हँसे
***अनुराधा चौहान***