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Wednesday, December 22, 2021

दायज़



चला रहा सदियों से आरी
आशाओं के बाग खड़ा।
माँग बढ़ाता नित ही दायज़
अपनी हठ को लिए अड़ा।

गठबंधन लाखों में उलझा
हर फेरे पर माँग बढ़े।
फूट-फूट मंडप में रोए
स्वप्न कभी जो हाथ गढ़े।
दंभ भरी लालच की वाणी
लगे कुठारी पीठ जड़ा।
चला रहा....

लोभ लगाए पावन फेरे
लेकर मँहगे स्वप्न बड़े।
एक हाथ में स्वर्ण पोटली
दायज रूपी रत्न जड़े।
फिर भी अपने हाथ पसारे
हर मंडप के बीच लड़ा।
चला रहा....

बोझ बढ़ा पगड़ी पर भारी
मान बिलखता पग नीचे।
कोमल आशा अश्रु बहाती
बैठी अँखियों को मीचे।
मान झुके माँगों के आगे 
करके अपना हृदय कड़ा।
चला रहा....

प्रीत बिलखकर पीछे छूटी
विदा हुई कटुता सारी।
कड़वाहट की पेटी लेकर
डोली बैठी वधु प्यारी।
मात पिता की देख विवशता
हृदय निकलकर वहीं पड़ा।
चला रहा....
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

21 comments:

  1. बोझ बढ़ा पगड़ी पर भारी
    मान बिलखता पग नीचे।
    कोमल आशा अश्रु बहाती
    बैठी अँखियों को मीचे।
    मान झुके माँगों के आगे
    करके अपना हृदय कड़ा।
    चला रहा....
    हकीकत को बयां करती हुई बहुत ही मार्मिक व हृदय स्पर्शी रचना!कानूनी तौर पर तो दहेज लेना गुनाह है पर हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है ! मैंने ऐसे बहुत से कानून के रक्षकों को देखा है जो दहेज लेने और देने से जरा भी नहीं हिचकीचाते! बहुत से ऐसे लोगों को भी देखा जो दहेज लेना अपनी शान समझते हैं! उन्हें लगता है दहेज ना लेंगे तो यह हमारी शान के खिलाफ होगा! मैंने आज तक अपनी पहचान एक भी ऐसा व्यक्ति(पुरुष समाज में) नहीं देखा जो दहेज लेने खिलाफ हो.. .! मन विचलित हो जाता है यह सब देखकर पर कुछ कर नहीं पाते! सिवाय अपने गुस्से और दर्द को शब्दों के जरिए बयां करने के!

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    1. आपने बिलकुल सही कहा मनीषा जी।आपका हार्दिक आभार।

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  2. हकीकत बयान करती बहुत सुंदर रचना।

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    1. हार्दिक आभार ज्योति जी।

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २४ दिसंबर २०२१ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी।

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  4. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२४-१२ -२०२१) को
    'अहंकार की हार'(चर्चा अंक -४२८८)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  5. बोझ बढ़ा पगड़ी पर भारी
    मान बिलखता पग नीचे।
    कोमल आशा अश्रु बहाती
    बैठी अँखियों को मीचे।
    मान झुके माँगों के आगे
    करके अपना हृदय कड़ा।
    चला रहा....बहुत बहुत सुंदर सृजन।
    सादर

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  6. बहुत सुंदर सराहनीय सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

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  7. बहुत सार्थक सृजन अनुराधा जी | समाज की कुरीतियों से उबरने में शिक्षा के बावजूद बहुत देर हो रही |

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  8. दहेज़ लेना और देना दोनों ही अपराध होते हुए भी खूब फल फूल रहे हैं । सार्थक सृजन ।

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  9. सत्य के करीब रचना ... लाजवाब ...

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

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  10. हार्दिक आभार भारती जी।

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  11. इस कुरीति के कारण न जाने कितनी कलियों को झुलसना पड़ा है, समाज की यथार्थ तस्वीर दिखाती प्रभावशाली रचना

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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