पूछते कुंडल खनक के
साज मन के क्यों बजे।
प्रीत की आहट सुनी क्या
स्वप्न जो नयना सजे?
लाज की लाली निखरकर
ओंठ को छूकर हँसी।
रात की रानी मचलकर
केश वेणी बन कसी।
माँग टीका क्यों दमककर
लाज धीरे से तजे?
पूछते.....
हार की लड़ियाँ मचलती
सुन प्रणय की आज धुन।
रैन आ देहरी पर बैठी
चूड़ियों का साज सुन।
क्यों हृदय की धड़कनों में
आज शहनाई बजे?
पूछते.....
पायलें फिर से खनककर
हर्ष का पूछे पता
घुँघरुओं का मौन टूटा
देख लहराती लता।
झूमती पुरवाई संग
ले रही चूनर मजे।
पूछते....
*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार(२५-१२ -२०२१) को
'रिश्तों के बन्धन'(चर्चा अंक -४२८९) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार सखी।
Deleteइस प्रीत की आहाट की बाखूबी खबर ली है आपने ...
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना है ...
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteवाह! बहुत ही सुंदर सृजन!
ReplyDeleteप्रीत का एहसास दुनिया का सबसे खूबसूरत एहसास होता है! 😍
हार्दिक आभार मनीषा जी।
Deleteप्रीत की आहट!!!पायल की रूनझुन
ReplyDeleteवाह!!!!
बहुत ही मनमोहक लाजवाब नवगीत।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteसुंदर श्रृंगार से सजा नव गीत , सुंदर मानवीकरण, सुंदर व्यंजनाएं।
ReplyDeleteबधाई सखी।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteमनमोहक सृजन । अति सुन्दर भावाभिव्यक्ति।
ReplyDeleteमैम नमस्कार ,
ReplyDeleteमुझे समझ नहीं आ रहा है कि क्या कहुं मैं ।
मनमोहक !सुन्दर !भावनात्मक सब तो कह दिया सबने ।
प्रेम से सराबोर व्याकुल मन को
संभालने का विफल प्रयास करती
अपनी प्रीत के इंतजार कि प्रकाष्ठा पर विराम लगाती
एक भारतीय महिला ।
आपका हार्दिक आभार ।
Deleteनारी का हर श्रृंगार प्रीत का अटूट बंधन दर्शाता है, आपने रचना में श्रृंगार की सुंदर अभिव्यंजना की है, बहुत ही खूबसूरत भावाभिव्यक्ति अनुराधा जी, बधाई ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार जिज्ञासा जी।
Delete