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Friday, December 17, 2021

आस मिलन की


चंदा की डोली में चढ़के
झूम हँसी पुरवाई।
तारो के आँगन धीरे से
बैठ निशा शरमाई।

नीरवता को छेड़ उठी फिर
सूखे पत्ते की धुन।
धवल चाँदनी धीरे कहती
मन की बातें कुछ सुन।
चंचलता किरणों से लेकर
ओढ़ ओढ़नी आई।
तारों के....

सिंदूरी सपने फिर चहके
दीप जले मन आँगन।
बिन बारिश के बरसा है कब
प्रेम भरा यह सावन।
आस मिलन की राह देखती
छोड़ रही तरुणाई।
तारों के....

नींद खड़ी दरवाजे कबसे
पलकें लेकर भारी।
देख चला चंदा भी थककर
सूनी गलियाँ सारी।
भोर लालिमा धीरे से फिर
ले उठी अंगड़ाई।
तारों के.....

*अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित*
चित्र गूगल से साभार

12 comments:

  1. प्रेम आशा और उम्मीद क भाव लिए सुन्दर रचना ...

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  2. बहुत सुन्‍दर आस जगाती गीत प्रस्‍तुति

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  3. आहा अति मनमोहक सृजन।
    सादर।

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    1. हार्दिक आभार श्वेता जी।

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 19 दिसंबर 2021 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  5. बहुत सुंदर सृजन सखी।

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  6. बहुत ही खुबसूरत सृजन!

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया।

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  7. हार्दिक आभार ज्योति जी।

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  8. सुन्दर गीत !
    आस मिलन की कभी तो पूरी होगी !

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