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Sunday, August 30, 2020

नारी बिन संसार अधूरा

सूनी कोख लिए चुप सिसके
बैठी कोने बनी वियोगी।
आँचल माँ का सूना करते
बने हुए हैं कैसे रोगी।

सपने कितने नयन बसाए
हाथों से वो वस्त्र सिली थी।
ममता से सहलाती हर पल
मन को कितनी खुशी मिली थी।
अभी कोख में करवट ली थी
टुकड़े होकर रोई होगी।
सूनी कोख.....

एक फूल की आशा लेकर
जीवन में बस काँटे बोते।
आँगन की कलियाँ को फेंके
खुशियों को जीवन से खोते।
कुरीतियों की भेंट चढ़ी वो 
कैसे माँ कष्टों को भोगी।
सूनी कोख.....

बिना कली कोई फूल बना
इतनी मानव को समझ नहीं।
यही सृष्टि की बनी रचियता
जीवन का है कटु सत्य यही।
नारी बिन संसार अधूरा
बने फिरेंगे फिर सब जोगी।
सूनी कोख.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Friday, August 28, 2020

ढलती शाम

 कुछ करले बातें हम अपनी
यह जग रैन बसेरा है।
कब टूटे साँसों का बंधन
उठ जाए ये डेरा है।

बीत गए हैं कितने सावन
कितने ही मधुमास गए।
क्यों सोचे उनके बारे में 
जो हमको ही भूल गए ।
अब ये पल हम दोनों के है
किस चिंता ने घेरा है।
कुछ कर ले...

बीत रही जीवन की संध्या
दिन अपनों पे वार दिए।
बची हुई गिनती की साँसे
चल हाथों में हाथ लिए।
सब पर खुशियाँ खूब लुटाई
बचा साथ अब तेरा है।
कुछ कर ले....

सुलझाते जीवन की दुविधा
आज कहाँ हम आ बैठे।
जिन्हें लगा रखा सीने से
वो कितने बैठे ऐंठे।
छोड़ पुराने दुख को पीछे
पकड़ हाथ बस मेरा है।
कुछ कर ले.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Monday, August 24, 2020

समय की चाल

समय बदलता कैसी चालें
देख हृदय से पीर झरे।
खोल रही हूँ याद पोटली
नयन नीर की धार गिरे।

कैसी जग की रीत रही है
चमक-धमक में सब उलझे।
तन की सुंदरता ही देखी
गाँठ नहीं मन की सुलझे।
ढके दिखावे की चादर में
कौन कहाँ अब दुख हरे।
समय...

आहट सुनके पीछे देखूँ
पहचाने सब लोग दिखे।
मुख मुस्काती परत चढ़ी है
अंदर बसा न झूठ दिखे।
बदल गई है रीत प्रीत की
मतलब की सब बात करे।
समय...

कल तक जो पीछे चलते थे
दूर दिखाई देते हैं।
चाल चली जीवन ने कैसी
देख कोई न चेते है।
रंग ढंग बिगड़े हैं सबके
कैसे भव से पार तरे।
समय......
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

आस उजाले की

 

भावों के अथाह सागर में
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब आँख खुली तो
लगा साँझ होने वाली है।

ढलते-ढलते दिन कहता है
आस उजाले की मत छोड़ो।
सूरज जैसे रहो चमकते
 नित ही समय के संग दौड़ो।
चाँद गगन में चढ़ता देखो
अम्बर से ढलती लाली है।
भावों..... 

बीत रहा है हर क्षण जीवन
खुशियाँ आकर द्वार खड़ी।
स्वप्न महल के रहे सोचते
बीत रही अनमोल घड़ी।
गहरे सागर बीच डोलती
नौका मन की खाली है।
भावों.....

बीत रहे हैं दिन बसंत के
पतझड़ पीछे झाँक रहा।
कर्म करो मत रुको हारकर
तेज गति से समय बहा।
 आशाओं की बारिश लेकर
महक रही हर डाली है
भावों..... 
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, August 12, 2020

मर्यादा के बाँध

विश्वास सदा मन वास करे
आशा के दीप जलाना।
फैलाना जग में उजियारा
अँधियारा दूर भगाना।

कंटक पथ पे वीर चले थे
मन भारत की शान लिए।
कड़ी चुनौती से टकराए
कभी नहीं भयभीत जिए।
अपनी धरती का मान बढ़े
यही राह है दिखलाना।
विश्वास....

वीर सपूतों की जननी ने
पग पग पे संग्राम सहे।
जात पात के झगड़े लेकर
मर्यादा के बाँध ढहे।
जात पात के बंधन तोड़ो
सीख यही है सिखलाना।
विश्वास...

कुंठा मन में वास करे तो
सद्भावों को खाती है।
आपस में मानवता लड़ती
प्रीत खोखली जाती है।
कष्ट सही रोई जब जननी
वीर ढाल बन के आना।
विश्वास...

सदमार्ग पर आगे बढ़ना
निर्बल को संबल देना।
उन्नत भारत की जय गूँजे
सकल विश्व में प्रण लेना।
पाँचजन्य सी शंख नाद कर
वीर भारती बढ़ जाना।
विश्वास....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Tuesday, August 11, 2020

तू कैसो ढीठ कन्हाई

ओ लाला मेरो
तू कैसो ढीठ कन्हाई।

पूरी और पकवान बनाए
गोकुल वासी भवन बुलाए
जन्मदिवस तेरो खीर बनाई
ओ लाला मेरो..

पूछ रहीं यशुमति मैया
बोलो प्यारे कृष्ण कन्हैया
तूने काहे को माटी खाई।
ओ लाला मेरो..

श्यामा गाय का दूध जमाया
माखन मिश्री भोग बनाया
रखी कटोरे मलाई।
ओ लाला मेरो...

बलदाऊ है सुघड़ सलोना
उसे ही दूँगी माखन लौना 
मुझे भाए न तेरी चतुराई।
ओ लाला मेरो..

नंद बाबा तोहे बहुत बिगाड़े
तू ग्वाल बाल संग भागे दौड़े
मुख माटी लपटाई।
ओ लाला मेरो...

खोला मुख ब्रह्मांड दिखाया
देख यशोदा सिर चकराया
बेसुध होती माई।
ओ लाला मेरो...

लीलाधर की लीला अद्भुत
भाग्यशाली है पूरा गोकुल
कण-कण भेेद छुुुुपाई
ओ लाला मेरो....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Saturday, August 8, 2020

अनु की कुण्डलियाँ

(1)
नारी प्रताड़ना
नारी ऐसी पीड़िता,सहती रहती वार।
झेल मानसिक यातना, पल-पल घुटती नार।
पल-पल घुटती नार।कभी आराम न आया।
माँ-बाबा का स्नेह,कभी ससुराल न पाया।
सहती अनु क्यों कष्ट,नहीं कोई लाचारी ।
मिले इन्हें अधिकार,बढ़ाती गरिमा नारी। 
(2)
दहेज
दादा की ये लालसा,पोते का हो मोल।
माताजी की चाहना,सोने से हो तोल।
सोने से हो तोल,खरा है लड़का सोना।
गाड़ी,नोटों संग,शगुन शादी का होना।
खोले अनु सुन राज,अभी न करेंगे वादा।
बेटी सिर का ताज,दहेज न देंगे दादा।। 
(3)
बेटी की शिक्षा
घर की लक्ष्मी बेटियाँ, कौन सुने अब बात।
बेशक कितने कष्ट हो, करें काम दिन-रात।
करें काम दिन-रात, कभी सम्मान न पाया।
दो कुल की पहचान, सदा ही मान बढ़ाया।
कहती अनु सुन भ्रात, न डालो आदत डर की।
सब मिल करो प्रयास, यही हैं लक्ष्मी घर की।
(4)
पराली से प्रदूषण
अम्बर में उड़ता धुआँ, जली पराली रात।
धुँध की है चादर घनी, छिपती दिखे प्रभात।।
छिपती दिखे प्रभात, सभी का दम है घुटता।
सूझे नहीं उपाय, प्रशासन मौन न छुटता।।
कहती अनु कर जोड़, लगा है मास दिसम्बर।
आज बचाओ भूमि, बचाओ मिलके अम्बर‌।।
(5)
नशा
चढ़ता सिर पे जब नशा,रहे नहीं कुछ याद।
अहम मनुष्य में आ बसा,देता खुद को दाद।।
देता खुद को दाद,नशे से बन आवारा।
गिरता हर घर द्वार,मद्य का वो है  मारा।।
कहती अनु सुन बात,नशे में क्यों तू पड़ता।
देता है बस घाव,नशा जब जमकर चढ़ता।।
(5)
सिगरेट की लत
थोड़ा सा रुतबा हुआ,झट कॉलर ली तान।
होंठों पे बीड़ी धुआँ,मुँह के भीतर पान।
मुँह के भीतर पान,नशे की यही हकीकत।
बीड़ी का गुणगान,कलेजा रहते फूँकत।
मान अनू यह बात,नशा जो पीछे छोड़ा।
बना वही बलवान,बना मन सच्चा थोड़ा।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार

Friday, August 7, 2020

करम का लेखा

छप्पर फाड़ मिले धन भारी
यही सोच सपनों में खोया।
कनक नदी कल-कलकर बहती
रत्न खेत में जमकर बोया।

धन वैभव के सपने पाले।
आसमान पर उड़ता ऐंठा।
आँख खुली तो गिरा धरातल 
कंटक झाड़ी पे आ बैठा।
नीलांबर से धूल चाटता
टूटे पंख पखेरू रोया।
छप्पर............. खोया।

चढ़ी सुनहरी ऐनक आँखों
कर्म धूप का तेज न देखा।
हाथ पसारे आज खड़ा जब
रोया देख करम का लेखा।
टूटी किश्ती लिए भँवर में
जीवन अपना आज डुबोया।
छप्पर....…........ खोया।

बात बड़ी करनी अति छोटी
चने झाड़ पर चढ़ इतराया।
दो पैसे खीसे में लेकर
रुपए भर का रौब जमाया।
हवा भरे गुब्बारे उड़ता
शूल नियति ने आन चुभोया।
छप्पर....…........ खोया
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

Wednesday, August 5, 2020

घर घर दीप जलाएंगे

ढोल नगाड़े धूम मचाकर 
राम सिया जय गाएंगे।
आस अधूरी होती पूरी
घर घर दीप जलाएंगे।

सदियों से ये संघर्ष चला
आज धर्म फिर विजय हुआ।
अयोध्या की छवि अति सुंदर
खुशी लहर ने हृदय छुआ।
राम पधारेंगे अब अँगना
सारा शहर सजाएंगे।

सरयु किनारे भव्य राम का
मंदिर होगा अति सुंदर।
राम लला तंबू से उठकर
पहुँचेंगे घर के अंदर।
सदियों का वनवास भोग के
राम लला घर आएंगे।

धर्म पताका जब भी फहरी
सतयुग का आरंभ हुआ।
राम हरेंगे सबकी पीड़ा
करो हृदय से यही दुआ।
अयोध्या सजी राम रंग में
मंदिर वहीं बनाएंगे।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Tuesday, August 4, 2020

भवसागर में नाव फंसी


काल मुहाने बैठा मानव
चलता है उल्टी चालें
मौत मुँह में खड़ी है दुनिया
फिर भी गलती न माने
महामारी विकराल हो रही
काम-काज सब ठप्प हुए
राजा बनकर जो बैठे थे 
वो राजा से रंक हुए
खाली जेब टटोले फिरते
पड़ी समय की जब लाठी
अर्थव्यवस्था डोल रही है
झुकी हुई लेकर काठी
हाहाकार मचा धरती पर
बड़ी बुरी यह बीमारी
उत्सव रौनक ध्वस्त हुई
कैद घरों में किलकारी
मुखपट्टिका के पीछे छुपती
मुस्कुराहट भी चेहरों की
कोरोना से बचने हेतु
होड़ लगाते पहरों की
स्वार्थ बना जीवन का दुश्मन
दुनिया भर को त्रस्त करे
बेरोजगारी बढ़ती जाती
नौजवान भी पस्त फिरे
विकास गति भी धीमी होती
भवसागर से नाव फंसी
मानवीय करतूतों पर
कैसी किस्मत ने लगाम कसी
अब भी न सुधरे यह मानव
कैसे रोकेगा काल गति।
जल प्लावन, भूकंप झटके
रूप प्रलय का धरा धरी
पहाड़ मिटा पेड़ों को काटे
पर्यावरण विनाश करे
व्यथा धरा की कर अनदेखी
हरियाली का नाश करे
मानवता का बैरी बनता
मानव को ही मार रहा
काल मुहाने बैठा मानव
दानव जैसा रूप धरा
स्वार्थ हुआ जब सिर पे हावी
बनना चाहे जग नेता
बारूदी शतरंज बिछाए
धोखे की चालें चलता
भ्रष्टाचार की चादर ओढ़े
पनप रही है बीमारी
आँखें मूँदे प्रभु भी बैठे
फल-फूल रही है महामारी
निर्धनता बढ़ती ही जाती
गरीब सहे भीषण पीड़ा
बेबस और लाचार परिजन 
कैसे उठाए सबका बीड़ा
***अनुराधा चौहान'सुधी'***

Saturday, August 1, 2020

अंत कलह कर संचारित

तृष्णा कण-कण वास किए है
अंत कलह कर संचारित।
काम वासना सिर चढ़ बैठी
ज्ञान चक्षु को कर वारित।

धरती का सब रूप बिगाड़े 
लूट रहे तरु आभूषण।
हरियाली की चादर हरते
आज बने सब खर-दूषण।
काल ग्रास बनने को आतुर
अंत हुआ अब आधारित।
तृष्णा कण-कण वास किए है
अंत कलह कर संचारित।

बारूदों के ढेर खड़े कर 
सारी सीमा पार हुई।
कंक्रीटों का जाल बिछाएं
लिए लालसा हाथ सुई।
आँख बाँध के पट्टी बैठे
अपराधी कर विस्तारित।
तृष्णा कण-कण वास किए है
अंत कलह कर संचारित।

हौले-हौले झटके देती
समझ कहाँ भूला मानव।
लोभ उफनता लावा बनके
ताप बढ़ाता ये दानव।
वन तपस्विनी धरणी तपती
सूर्य मंत्र कर उच्चारित।
तृष्णा कण-कण वास किए है
अंत कलह कर संचारित।

***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

मेहंदी भीनी जब महकी

मेहंदी भीनी जब महकी
सावन भी पुरजोर झरा।
तीज त्यौहार संग समेटे
खुशियों से ये माह भरा।

राखी रेशम डोर बनाती
नेह भरा है यह नाता।
हर धागे में आस प्यार की
खुश होवे मेरा भ्राता।
बाबुल भेज दियो भैया को
रहे हमेशा प्यार हरा।
मेहंदी भीनी जब महकी
सावन भी पुरजोर झरा।

सावन का जब झूला डोले
सखियाँ गीत सुनाती हैं।
चुहल भरी पीहर की यादें
हरपल बहुत सताती हैं।
रंग-बिरंगी राखी रचती
गाती मंगल गीत जरा।
मेहंदी भीनी जब महकी
सावन भी पुरजोर झरा।

राखी का त्यौहार समेटे
प्यार भरा अद्भुत नाता।
बहन स्नेह की बारिश है
 वो बने धूप में छाता। 
उजियारा जीवन का भाई
देख ठिठकता तिमिर डरा।
मेहंदी भीनी जब महकी
सावन भी पुरजोर झरा।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार