देख हृदय से पीर झरे।
खोल रही हूँ याद पोटली
नयन नीर की धार गिरे।
कैसी जग की रीत रही है
चमक-धमक में सब उलझे।
तन की सुंदरता ही देखी
गाँठ नहीं मन की सुलझे।
ढके दिखावे की चादर में
कौन कहाँ अब दुख हरे।
समय...
आहट सुनके पीछे देखूँ
पहचाने सब लोग दिखे।
मुख मुस्काती परत चढ़ी है
अंदर बसा न झूठ दिखे।
बदल गई है रीत प्रीत की
मतलब की सब बात करे।
समय...
कल तक जो पीछे चलते थे
दूर दिखाई देते हैं।
चाल चली जीवन ने कैसी
देख कोई न चेते है।
रंग ढंग बिगड़े हैं सबके
कैसे भव से पार तरे।
कल तक जो पीछे चलते थे
दूर दिखाई देते हैं।
चाल चली जीवन ने कैसी
देख कोई न चेते है।
रंग ढंग बिगड़े हैं सबके
कैसे भव से पार तरे।
समय......
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
चित्र गूगल से साभार
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआहट सुनके पीछे देखूँ
ReplyDeleteपहचाने सब लोग दिखे।
मुख मुस्काती परत चढ़ी है
अंदर बसा न झूठ दिखे।
बदल गई है रीत प्रीत की
मतलब की सब बात करे।
समय...
बहुत सही
हार्दिक आभार कविता जी
Deleteसमय की चाल ऐसी ही है ... साथ कोई नहीं देता ...
ReplyDeleteसब अपने रस्ते निकल जाते हैं ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteवाह बहुत सुंदर अभिव्यक्ति सखी
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत बढ़िया
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
ReplyDeleteबहुत सुंदर सार्थक भाव लिए सुंदर नवगीत
ReplyDelete