दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब आँख खुली तो
लगा साँझ होने वाली है।
ढलते-ढलते दिन कहता है
आस उजाले की मत छोड़ो।
सूरज जैसे रहो चमकते
नित ही समय के संग दौड़ो।
चाँद गगन में चढ़ता देखो
अम्बर से ढलती लाली है।
भावों.....
भावों.....
बीत रहा है हर क्षण जीवन
खुशियाँ आकर द्वार खड़ी।
स्वप्न महल के रहे सोचते
बीत रही अनमोल घड़ी।
गहरे सागर बीच डोलती
नौका मन की खाली है।
भावों.....
बीत रहे हैं दिन बसंत के
पतझड़ पीछे झाँक रहा।
कर्म करो मत रुको हारकर
तेज गति से समय बहा।
नौका मन की खाली है।
भावों.....
बीत रहे हैं दिन बसंत के
पतझड़ पीछे झाँक रहा।
कर्म करो मत रुको हारकर
तेज गति से समय बहा।
आशाओं की बारिश लेकर
महक रही हर डाली है
भावों.....
महक रही हर डाली है
भावों.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
आपकी रचना की पंक्ति-
"नौका मन की खाली है"
हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteवाह!सखी बहुत ही लाजवाब सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआदरणीया मैम ,
ReplyDeleteबहुत ही सुंदर व् प्रेरणादायक कविता जो मन में आशा और उल्लास भर देती है।
सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार साथ ही साथ मेरे ब्लग पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए भी ह्रदय से आभार व सादर नमन।
हार्दिक आभार अनंता जी
Deleteवाह!!!
ReplyDeleteलाजवाब नवगीत।
हार्दिक आभार सखी
Deleteबहुत खूब ...
ReplyDeleteसमय बीत रहा है ... वर्तमान अतीत हो रहा है ... पर चलना फिर भी जरूरी है ... जीना जरूरी है ...
वाह !बेहतरीन अभिव्यक्ति बहना।
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार सखी
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