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Monday, August 24, 2020

आस उजाले की

 

भावों के अथाह सागर में
दिल की नैया क्यों खाली है।
सहसा ही जब आँख खुली तो
लगा साँझ होने वाली है।

ढलते-ढलते दिन कहता है
आस उजाले की मत छोड़ो।
सूरज जैसे रहो चमकते
 नित ही समय के संग दौड़ो।
चाँद गगन में चढ़ता देखो
अम्बर से ढलती लाली है।
भावों..... 

बीत रहा है हर क्षण जीवन
खुशियाँ आकर द्वार खड़ी।
स्वप्न महल के रहे सोचते
बीत रही अनमोल घड़ी।
गहरे सागर बीच डोलती
नौका मन की खाली है।
भावों.....

बीत रहे हैं दिन बसंत के
पतझड़ पीछे झाँक रहा।
कर्म करो मत रुको हारकर
तेज गति से समय बहा।
 आशाओं की बारिश लेकर
महक रही हर डाली है
भावों..... 
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

13 comments:

  1. नमस्ते,

    आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में मंगलवार 25 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



    आपकी रचना की पंक्ति-



    "नौका मन की खाली है"

    हमारी प्रस्तुति का शीर्षक होगी।


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    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  2. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  3. वाह!सखी बहुत ही लाजवाब सृजन ।

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  4. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही सुंदर व् प्रेरणादायक कविता जो मन में आशा और उल्लास भर देती है।
    सुंदर रचना के लिए ह्रदय से आभार साथ ही साथ मेरे ब्लग पर आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए भी ह्रदय से आभार व सादर नमन।

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    1. हार्दिक आभार अनंता जी

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  5. वाह!!!
    लाजवाब नवगीत।

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  6. बहुत खूब ...
    समय बीत रहा है ... वर्तमान अतीत हो रहा है ... पर चलना फिर भी जरूरी है ... जीना जरूरी है ...

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  7. वाह !बेहतरीन अभिव्यक्ति बहना।
    सादर

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