सूनी कोख लिए चुप सिसके
बैठी कोने बनी वियोगी।
आँचल माँ का सूना करते
बने हुए हैं कैसे रोगी।
सपने कितने नयन बसाए
हाथों से वो वस्त्र सिली थी।
ममता से सहलाती हर पल
मन को कितनी खुशी मिली थी।
अभी कोख में करवट ली थी
टुकड़े होकर रोई होगी।
सूनी कोख.....
एक फूल की आशा लेकर
जीवन में बस काँटे बोते।
आँगन की कलियाँ को फेंके
खुशियों को जीवन से खोते।
कुरीतियों की भेंट चढ़ी वो
कैसे माँ कष्टों को भोगी।
सूनी कोख.....
बिना कली कोई फूल बना
इतनी मानव को समझ नहीं।
यही सृष्टि की बनी रचियता
जीवन का है कटु सत्य यही।
नारी बिन संसार अधूरा
बने फिरेंगे फिर सब जोगी।
सूनी कोख.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
सादर नमस्कार ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01 -9 -2020 ) को "शासन को चलाती है सुरा" (चर्चा अंक 3810) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
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कामिनी सिन्हा
सच है की नारी बिना ये जीवन, संसार ये श्रृष्टि सभी कुछ अधूरा है ...
ReplyDeleteकरुना और प्रेम सिर्फ नारी ही दे सकती है संसार में ...
वाह
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteकटुसत्य बताती रचना ...वाह अनुराधा जी.. बिना कली कोई फूल बना
ReplyDeleteइतनी मानव को समझ नहीं।
यही सृष्टि की बनी रचियता
जीवन का है कटु सत्य यही।... और ..
टुकड़े होकर रोई होगी।
सूनी कोख.....क्या खूब कहा... मर्मस्पर्शी
हार्दिक आभार आदरणीया
Deleteहृदयस्पर्शी सृजन अनुराधा जी ।
ReplyDeleteबहन मर्मस्पर्शी।सच नारी बिना संसार अधूरा है।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सुजाता जी।
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