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Sunday, August 30, 2020

नारी बिन संसार अधूरा

सूनी कोख लिए चुप सिसके
बैठी कोने बनी वियोगी।
आँचल माँ का सूना करते
बने हुए हैं कैसे रोगी।

सपने कितने नयन बसाए
हाथों से वो वस्त्र सिली थी।
ममता से सहलाती हर पल
मन को कितनी खुशी मिली थी।
अभी कोख में करवट ली थी
टुकड़े होकर रोई होगी।
सूनी कोख.....

एक फूल की आशा लेकर
जीवन में बस काँटे बोते।
आँगन की कलियाँ को फेंके
खुशियों को जीवन से खोते।
कुरीतियों की भेंट चढ़ी वो 
कैसे माँ कष्टों को भोगी।
सूनी कोख.....

बिना कली कोई फूल बना
इतनी मानव को समझ नहीं।
यही सृष्टि की बनी रचियता
जीवन का है कटु सत्य यही।
नारी बिन संसार अधूरा
बने फिरेंगे फिर सब जोगी।
सूनी कोख.....
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार

9 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (01 -9 -2020 ) को "शासन को चलाती है सुरा" (चर्चा अंक 3810) पर भी होगी,आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    ---
    कामिनी सिन्हा

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  2. सच है की नारी बिना ये जीवन, संसार ये श्रृष्टि सभी कुछ अधूरा है ...
    करुना और प्रेम सिर्फ नारी ही दे सकती है संसार में ...

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  3. Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. कटुसत्य बताती रचना ...वाह अनुराधा जी.. बिना कली कोई फूल बना
    इतनी मानव को समझ नहीं।
    यही सृष्टि की बनी रचियता
    जीवन का है कटु सत्य यही।... और ..
    टुकड़े होकर रोई होगी।
    सूनी कोख.....क्या खूब कहा... मर्मस्पर्शी

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया

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  5. हृदयस्पर्शी सृजन अनुराधा जी ।

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  6. बहन मर्मस्पर्शी।सच नारी बिना संसार अधूरा है।

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    1. हार्दिक आभार सुजाता जी।

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