काल मुहाने बैठा मानव
चलता है उल्टी चालें
मौत मुँह में खड़ी है दुनिया
फिर भी गलती न माने
महामारी विकराल हो रही
काम-काज सब ठप्प हुए
राजा बनकर जो बैठे थे
वो राजा से रंक हुए
खाली जेब टटोले फिरते
पड़ी समय की जब लाठी
अर्थव्यवस्था डोल रही है
झुकी हुई लेकर काठी
हाहाकार मचा धरती पर
बड़ी बुरी यह बीमारी
उत्सव रौनक ध्वस्त हुई
कैद घरों में किलकारी
मुखपट्टिका के पीछे छुपती
मुस्कुराहट भी चेहरों की
कोरोना से बचने हेतु
होड़ लगाते पहरों की
स्वार्थ बना जीवन का दुश्मन
दुनिया भर को त्रस्त करे
बेरोजगारी बढ़ती जाती
नौजवान भी पस्त फिरे
विकास गति भी धीमी होती
भवसागर से नाव फंसी
मानवीय करतूतों पर
कैसी किस्मत ने लगाम कसी
अब भी न सुधरे यह मानव
कैसे रोकेगा काल गति।
जल प्लावन, भूकंप झटके
रूप प्रलय का धरा धरी
पहाड़ मिटा पेड़ों को काटे
पर्यावरण विनाश करे
व्यथा धरा की कर अनदेखी
हरियाली का नाश करे
मानवता का बैरी बनता
मानव को ही मार रहा
काल मुहाने बैठा मानव
दानव जैसा रूप धरा
स्वार्थ हुआ जब सिर पे हावी
बनना चाहे जग नेता
बारूदी शतरंज बिछाए
धोखे की चालें चलता
भ्रष्टाचार की चादर ओढ़े
पनप रही है बीमारी
आँखें मूँदे प्रभु भी बैठे
फल-फूल रही है महामारी
निर्धनता बढ़ती ही जाती
गरीब सहे भीषण पीड़ा
बेबस और लाचार परिजन
कैसे उठाए सबका बीड़ा
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
वाह!सखी ,बहुत ही सुंदर और सामयिक ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 10 अगस्त 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर सृजन।
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