(1)
नारी प्रताड़ना
नारी ऐसी पीड़िता,सहती रहती वार।
झेल मानसिक यातना, पल-पल घुटती नार।
पल-पल घुटती नार।कभी आराम न आया।
माँ-बाबा का स्नेह,कभी ससुराल न पाया।
सहती अनु क्यों कष्ट,नहीं कोई लाचारी ।
मिले इन्हें अधिकार,बढ़ाती गरिमा नारी।
(2)
दहेज
दादा की ये लालसा,पोते का हो मोल।
माताजी की चाहना,सोने से हो तोल।
सोने से हो तोल,खरा है लड़का सोना।
गाड़ी,नोटों संग,शगुन शादी का होना।
खोले अनु सुन राज,अभी न करेंगे वादा।
बेटी सिर का ताज,दहेज न देंगे दादा।।
(3)
बेटी की शिक्षा
घर की लक्ष्मी बेटियाँ, कौन सुने अब बात।
बेशक कितने कष्ट हो, करें काम दिन-रात।
करें काम दिन-रात, कभी सम्मान न पाया।
दो कुल की पहचान, सदा ही मान बढ़ाया।
कहती अनु सुन भ्रात, न डालो आदत डर की।
सब मिल करो प्रयास, यही हैं लक्ष्मी घर की।
(4)
पराली से प्रदूषण
अम्बर में उड़ता धुआँ, जली पराली रात।
धुँध की है चादर घनी, छिपती दिखे प्रभात।।
छिपती दिखे प्रभात, सभी का दम है घुटता।
सूझे नहीं उपाय, प्रशासन मौन न छुटता।।
कहती अनु कर जोड़, लगा है मास दिसम्बर।
आज बचाओ भूमि, बचाओ मिलके अम्बर।।
(5)
नशा
चढ़ता सिर पे जब नशा,रहे नहीं कुछ याद।
अहम मनुष्य में आ बसा,देता खुद को दाद।।
देता खुद को दाद,नशे से बन आवारा।
गिरता हर घर द्वार,मद्य का वो है मारा।।
कहती अनु सुन बात,नशे में क्यों तू पड़ता।
देता है बस घाव,नशा जब जमकर चढ़ता।।
(5)
सिगरेट की लत
थोड़ा सा रुतबा हुआ,झट कॉलर ली तान।
होंठों पे बीड़ी धुआँ,मुँह के भीतर पान।
मुँह के भीतर पान,नशे की यही हकीकत।
बीड़ी का गुणगान,कलेजा रहते फूँकत।
मान अनू यह बात,नशा जो पीछे छोड़ा।
बना वही बलवान,बना मन सच्चा थोड़ा।
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
सामाजिक कुरीतियों पर प्रहार करती अद्भुत कुंडलियां. सुन्दर सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई सखी !
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 अगस्त 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीया यशोदा जी।
Deleteसमाज की दशा को इंगित करती कुंडलिया बहुत खुब जी नमन
ReplyDeleteहार्दिक आभार मनु जी
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteलाजवाब कुण्डलियाँ
ReplyDeleteएक से बढ़कर एक...
वाह!!!
हार्दिक आभार सखी
Deleteसामाजिक कुरीतियों पर, गहरी ! सुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
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