यह मान हमारा है जान हमारी
मातृभूमि की है शान निराली
हैं गौरव हमें इस भूमि पर
हम इसकी संतानें हैं
जिसकी रक्षा की खातिर
वीरों ने दी कुर्बानी है
मानव रुप में श्रीराम,कृष्ण
इसकी गोद में पले बढ़े
गंगा यमुना सरस्वती
इसके सीने पर सदा बहे
लहराता विशाल सागर
कदम छूता इस भूमि का
खड़ा हिमालय सीना ताने
इस भूमि के आंगन में
हरे-भरे पेड़ों से शोभित
इस भूमि का आंचल है
भरी है सीने में इसके
शोर्य वीरों की शोर्य गाथा
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलयुग
सब युगों की यह जीवनदाता
अब कई विषैले नागों से
जहरीली होती भूमि है
नारी की पीड़ा से इसकी
बंजर होती छाती है
है लहुलुहान यह भूमि
मासूमों के लहु से
कब इसकी पीड़ा मिटेगी
अत्याचारियों के जुल्मों से
***अनुराधा चौहान***
मातृभूमि की है शान निराली
हैं गौरव हमें इस भूमि पर
हम इसकी संतानें हैं
जिसकी रक्षा की खातिर
वीरों ने दी कुर्बानी है
मानव रुप में श्रीराम,कृष्ण
इसकी गोद में पले बढ़े
गंगा यमुना सरस्वती
इसके सीने पर सदा बहे
लहराता विशाल सागर
कदम छूता इस भूमि का
खड़ा हिमालय सीना ताने
इस भूमि के आंगन में
हरे-भरे पेड़ों से शोभित
इस भूमि का आंचल है
भरी है सीने में इसके
शोर्य वीरों की शोर्य गाथा
सतयुग,त्रेता,द्वापर,कलयुग
सब युगों की यह जीवनदाता
अब कई विषैले नागों से
जहरीली होती भूमि है
नारी की पीड़ा से इसकी
बंजर होती छाती है
है लहुलुहान यह भूमि
मासूमों के लहु से
कब इसकी पीड़ा मिटेगी
अत्याचारियों के जुल्मों से
***अनुराधा चौहान***
वंदे मातरम
ReplyDeleteबहुत सुंदर
देश प्रेम सेलबरेज सुंदर रचना ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सखी
Deleteसुन्दर रचना ...
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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