Followers

Monday, July 29, 2019

सिलवटें

सिलवटें ही सिलवटें हैं
ज़िंदगी की चादर पर
कितना भी झाड़ों,फटको
बिछाकर सीधा करो
कहीं न कहीं से कोई 
समस्या आ बैठती
निचोड़ती,सिकोड़ती
ज़िंदगी को झिंझोड़ती है
फिर सलवटों से भरकर
अस्त-व्यस्त ज़िंदगी फिर
ग़म को परे झटकती
आँसुओं में भीगती 
फिर आस में सूखती
फीके पड़ते रंगों से
अपना दर्द दिखाती
जिम्मेदारी के बोझ तले 
दबती और सिकुड़ती
घिस-घिस के महीन हो
मुश्किलों से लड़कर
अंततः झर से झर जाती
फिर सीधी-सपाट होकर पड़ी
बिना किसी हलचल
बिना कोई झंझट के
सारी परेशानियों से मुक्ति पा जाती
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

18 comments:

  1. व्वाहहहह..
    बेहतरीन..
    सार..

    ReplyDelete
  2. व्वाहहहह...
    बेहतरीन..
    सादर...

    ReplyDelete

  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना 31 जुलाई 2019 के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    ReplyDelete
    Replies
    1. सहृदय आभार पम्मी जी

      Delete
  4. बहुत सुंदर, तल्खी है पर सार्थक सी रचना ।

    ReplyDelete
  5. बेहतरीन सृजन बहुत ही सुन्दर रचना |

    ReplyDelete
  6. जिंदगी की हकीकत बयाँ करती भावपूर्ण रचना

    ReplyDelete
  7. जिन्दगी का बस यही फलसफा...
    वाह!!!

    ReplyDelete
  8. बहुत ही लाजवाब सखी।

    ReplyDelete
  9. सलवटों की कहानी ... कलम की जुबानी ...
    बहुत लाजवाब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय

      Delete
  10. अदभुत और अनुपम प्रस्तुति है आपकी

    ReplyDelete