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Wednesday, July 10, 2019

यादों की बदली

🌧
झड़ी लगी है सावन की
बहे नयनों से नीर नदी
कहाँ बसे हो जाकर परदेशी
मिलने की लगन लगी है

चपला करे पल-पल गर्जन
धरती लहराए धानी चूनर
दादुर,पपीहे कर उठे शोर
बागों में झूमकर नाचें मोर

निर्झर झर-झर राग सुनाते
धरती झूम-झूमकर नाचे
सावन के पड़ने लगे हैं झूले
रह-रहकर भीगी यादें झूले

विरह में तड़पे मन अकेला 
अंबर में घटाओं का मेला
बैरन निंदिया आँखों से दूर
सावन बरसे होके मजबूर

बीती जाए घड़ी यह सुहानी
रिमझिम बरसे बरखा रानी
चली हौले से पवन पुरवाई
सावन में यादों की बदली छाई
***अनुराधा चौहान***

11 comments:

  1. मानस भाव और प्रकृति साम्य
    सुंदर

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  2. विरह गीत, सुंदर सरस अभिव्यक्ति सखी ।

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  3. बहुत बहुत आभार प्रिय सखी

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  4. बहुत ही सुन्दर सृजन सखी
    सादर

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    1. हार्दिक आभार प्रिय सखी

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (13 -07-2019) को "बहते चिनाब " (चर्चा अंक- 3395) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है

    ….
    अनीता सैनी

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  6. Replies
    1. धन्यवाद उर्मिला दी

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  7. बहुत ही सुन्दर सरस रचना...
    वाह!!!

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  8. हार्दिक आभार श्वेता जी

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