ज़िंदगी अभिनय नहीं
यह सत्य तुम पहचान लो।
कर्म से पहचान होती
यह बात सच्ची जान लो।
ख्वाहिशों का बोझ सिर पे
काम कुछ करना नहीं है।
स्वप्न में बीने रुपैया
दाम कुछ भरना नहीं है।
डींग भरता जो हमेशा
शेखचिल्ली वो मान लो।
ज़िंदगी अभिनय......
आँखों में चश्मा काला
धूप हल्की बोलते हैं।
हाथ खीसे में दबाए
शान में बस डोलते हैं।
मेहनत करती नाम रोशन
सत्यता यह जान लो
ज़िंदगी अभिनय..........
भागती गाड़ी समय की
पकड़े वही जीतता है।
आलस्य की दौड़ चलकर
राह कंटक सींचता है।
जगमगाना हो दीप सा
कर्म करने की ठान लो।
ज़िंदगी अभिनय.........
अनुराधा चौहान'सुधी'स्वरचित
चित्र गूगल से साभार
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (२१-०१ -२०२२ ) को
'कैसे भेंट करूँ? '(चर्चा अंक-४३१६) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
हार्दिक आभार सखी।
Deleteबहुत सुंदर रचना,अनुराधा दी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ज्योति जी
Deleteख्वाहिशों का बोझ सिर पे
ReplyDeleteकाम कुछ करना नहीं है।
स्वप्न में बीने रुपैया
दाम कुछ भरना नहीं है।
डींग भरता जो हमेशा
शेखचिल्ली वो मान लो।
ज़िंदगी अभिनय.....
बहुत ही सुंदर रचना
हार्दिक आभार आदरणीय
Deleteबहुत सुन्दर !
ReplyDeleteशीत-लहर बीतते ही इस सलाह पर गौर किया जाएगा. फ़िलहाल तो रजाई ओढ़ कर लेटे हुए ही हैं.
हार्दिक आभार आदरणीय।
Deleteहार्दिक आभार आदरणीय।
ReplyDeleteकर्म का महत्व समझाया सुंदर नवगीत सखी ।
ReplyDeleteअप्रतिम।
हार्दिक आभार सखी।
Deleteभागती गाड़ी समय की
ReplyDeleteपकड़े वही जीतता है।
आलस्य की दौड़ चलकर
राह कंटक सींचता है।
जगमगाना हो दीप सा
कर्म करने की ठान लो।
ज़िंदगी अभिनय....
कर्म की प्रधानता और आलस्य का त्याग करने का संदेश देती लाजवाब रचना
वाह!!!
सही कहा । सुन्दर सृजन ।
ReplyDeleteहार्दिक आभार अमृता जी।
Deleteबहुत बहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आलोक जी।
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