प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
पीर सूखे पात जैसी
बात ये कहती सही है।
महकती इन क्यारियों में
गीत गूँजें मधुमास के।
कह रहीं कलियाँ चटक के
सुर गुनगुना ले रास के।
नयन बहती नीर धारा
आस को लेकर बही है।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
कूक कोयल भी सुनाके
संदेश हृदय दे जाती।
पुरवा आँचल हौले से
आँगन आके लहराती।
उर्मियाँ घूँघट हटाकर
फिर मचलती आ रही हैं।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
चीरती है बादलों को
दामिनी करती है शोर।
मेघ काले गर्जना सुन
झूमते उपवन में मोर।
विरह के अनमोल धागे
रागिनी बुनती रही है।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं।
***अनुराधा चौहान'सुधी'***
चित्र गूगल से साभार
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 21 मई 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
धन्यवाद आदरणीय
Deleteसुन्दर सृजन
ReplyDeleteहार्दिक आभार सखी
ReplyDeleteबहुत सुंदर रचना
ReplyDeleteहार्दिक आभार आदरणीय
Deleteआदरणीया अनुराधा चौहान सुधी जी, छंदों में आबद्ध आपकी गीत रचना बहुत सुन्दर है। खासकर ये पंक्तियाँ कुछ परिवर्तन के साथ :
ReplyDeleteचीरती है बादलों को
दामिनी करती है शोर।
मेघ काले गर्जना सुन
झूमते उपवन में मोर।
विरह के अनमोल धागे
रागिनी बुनती रही है।
प्रीत की फुलवारियाँ भी
वेदना सहती रही हैं। --ब्रजेंद्र नाथ
आपके सुझाव अनुसार बदलाव कर लिया है। हार्दिक आभार आदरणीय 🙏
Deleteवाह !बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय दीदी.
ReplyDeleteसादर
हार्दिक आभार बहना
Delete