(चित्र गूगल से संगृहीत) |
झुर्रियों से भरा चेहरा
मन के कोने में दबी आशा
पगडंडियों को निहारती
हर आहट बैचेन करती
काट रही है दिन और रैन
शायद अब आए बच्चे मेरे
राह देखते व्याकुल नयन
चारपाई पर बैठकर
हरपल यही सोचती
सूनी आँखें गलियों में
बच्चों का बचपन खोजती
बीत रहे साल दर साल
बड़े जतन से था पाला
पूरी की थी हर ख्वाहिश
बुढ़ापे का बनेंगे सहारा
सोचकर भेजा था परदेश
वो घर से बाहर क्या निकले
बाहर की दुनिया में खो गए
अपनी गृहस्थी बसा कर वो
मां-बाप की दुनिया भूल गए
अगर वो वापस न आए तो
सोचकर मन घबरा जाए
बूढ़ी आँखों से छलक कर
आँसू गालों पर आ जाएं
***अनुराधा चौहान***
अपने जान दूर जाते हैं तो आँखें छलक उठती हैं ...
ReplyDeleteबहुत भावपूर्ण रचना ...
धन्यवाद आदरणीय
Deleteअच्छी रचना, आज का यथार्थ है.
ReplyDeleteधन्यवाद आप सभी का
ReplyDeleteकल आपकी ये बेहतरीन रचना विविधा पर साझा की जाएगी
ReplyDeletehttps://vividha4.blogspot.com/
सादर
जी धन्यवाद यशोदा जी
Deleteभावपूर्ण रचना
ReplyDeleteसादर आभार रेवा जी
Deleteसुन्दर
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय
Deleteसादर आभार आपका
ReplyDeleteनिशब्द... :) just want to say hats of to you mam.....
ReplyDeleteकभी फुर्सत मिले तो नाचीज़ की दहलीज़ पर भी आयें-
संजय भास्कर
शब्दों की मुस्कुराहट
http://sanjaybhaskar.blogspot.in
धन्यवाद आदरणीय
Deleteबहुत ही मार्मिक रचना है प्रिय अनुराधा जी | बुढापे के असीम अनकहे संताप को समेटे शब्द शब्द वेदना का शोर है |--
ReplyDeleteसालों देखी राह आंखों ने
ना लौट के आये जाने वाले
जाने कहाँ बसाई बस्ती ?
तोड निकल गये मन के शिवाले
नैनो से रिमझिम बरसात हुई
जाने सुबह हुई कब रात हुई
कोई लौट ना आया सुनने
खुद से मन की बात हुई
भूल गये स्नेह ममता के रिश्ते
देख ना पाए हिय के छाले
जाने कहाँ बसाई बस्ती ?
तोड़ निकल गये मन के शिवाले !
मन को भिगोने वाली रचना के लिए साधुवाद | सस्नेह
सहृदय आभार सखी
Deleteमां-बाप की दुनिया भूल गए
ReplyDeleteअगर वो वापस न आए तो
सोचकर मन घबरा जाए
बूढ़ी आँखों से छलक कर
आँसू गालों पर आ जाएं
सच में भूल गए,तरसती मां बिना कुछ निहारती सूनी आंखों से कि जो भूल गए
शायद उन्हें मेरी पीड़ा का एहसास हो, लेकिन यथार्थ इससे परे है।
सहृदय आभार दी
Deleteहृदय स्पर्शी रचना,सादर स्नेह
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