(चित्र गूगल से संगृहीत) |
जिंदगी तो
बसती है गांँव में
कच्चे मकानों में
खेत खलिहानों में
अमराई के बाग में
गांँव की चौपालों में
बुजुर्गो के किस्सों में
ढ़ेर सारे रिश्तों में
आंँगन में पड़ी
चारपाई में
दादी-नानी की
कहानियों में
नीम की
शीतल छांँव में
मिट्टी की
सौंधी खुशबू में
पेड़ों पर
झूलते झूलों में
मां के
मिट्टी के चूल्हे में
हाथों से बने माखन में
तालाबों में
तैरते बच्चों में
पनिहारिन की गगरी में
पायल की मधुर
छम-छम में
छम-छम में
जिंदगी तो बसती है
केवल गांव में
शहरों की
मशीन सी जिंदगी
किसी को किसी
फिक्र नहीं
अपने कार्यों में
लगें हैं सब
अपने लिए ही वक्त़ नहीं
जिंदगी तो बसती है
केवल गांँव में
***अनुराधा चौहान***
क्या बात है अति उत्तम
ReplyDeleteवाह बहुत सुन्दर सही कहा और बहुत सरस भी।
ReplyDeleteसुंदर काव्य सुंदर भाव अनुराधा जी ।
धन्यवाद कुसुम जी
Deleteसुंदर!!!
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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