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Thursday, June 28, 2018

वो दिन दूर नहीं

हवाओं को रोकती
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली
सड़कों का जाल
जिंदगी को है डस रहीं
हवाओं में जहर घोलती
गाड़ियां हैं दौड़ रहीं
नित नई बीमारी को
वो जन्म दे रही
रसायनिक मिलावट से
दूषित होते खाद्य पदार्थ भी
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
पेड़ निरंतर कट रहे
नदी नाले पाट कर
उन पर बंगलें बन रहे
अब भी न चेता इंसान
तो वो दिन दूर नहीं
स्वच्छ हवा और पानी को
जब पल पल तरसे
यह जीवन
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

6 comments:

  1. हर शब्द अपनी दास्ताँ बयां कर रहा है आगे कुछ कहने की गुंजाईश ही कहाँ है बधाई स्वीकारें

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  2. बहुत बहुत धन्यवाद आपका

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  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २३ मार्च २०२० के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  4. वाह बेहतरीन सृजन सखी।बहुत सुंदर।

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  5. वाह!सखी ,बहुत सुंदर सृजन । सही है हमें जल्दी ही चेतना होगा ।

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  6. कैमिकलों की मिलावट है असली मिलावट है।
    चेतना तो है अब।
    सुंदर रचना।

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