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Thursday, July 19, 2018

क्यों बार बार


क्यों बार बार
यूं ही याद आते हो
क्यों बार बार
फिर वही स्वप्न दिखाते हो
क्यों बार बार
प्यार की लौ जलाते हो
क्यों बार बार
मिलने चले आते हो
क्यों बार बार
छोड़ कर चले जाते हो
पर बस अब नहीं
इस बार तुम नहीं
मैं जा रही हूं
बुझा कर लौ प्यार की
तोड़ हर कसम
तोड़ कर हर वादा
बार बार नहीं
सिर्फ एक बार में
तुम्हारे झूठे वादों से
कहीं दूर बहुत दूर
***अनुराधा चौहान***

15 comments:

  1. भावपूर्ण रचना

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  2. बहुत सुंदर रचना। रूक जाओ एक बार फिर से। लौ लगी दिल के पनघट पर।

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  3. भाव पूर्ण ... मन की सदा है जिसको लिखा है ...

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  4. बहुत सुंदर दिल को छुति अभिव्यक्ति... अनुराधा दी।

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    1. सादर आभार ज्योती जी

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  5. थोड़े शब्दों में बहुत ही बड़ी बात कह दी आपने....लेकिन इंसान समझ नहीं पाता...बहुत अच्छी लगी यह नज़्म

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

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  6. आखिर कभी तो स्वाभिमानी मन ऐसा निर्णय लेगा ही | सुंदर भावपूर्ण रचना !!!

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    1. बहुत बहुत आभार रेणू जी

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  7. बहुत खूब!
    तोड के झुठे राग सभी बस मुक्त हो जाऊं।
    सुंदर भाव रचना।

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