Followers

Saturday, July 21, 2018

नन्ही सी आशा

चाह नहीं खिलौनों की
न किसी बँधन में बँधना चाहूँ
मैं पँछी उन्मुक्त गगन की
बन मस्त मगन उड़ना चाहूँ
रंग बिरंगे फूलों पर
बन तितली उड़ना चाहूँ
संग पवन पुरवाई के
मस्त मगन बहना चाहूँ
या बारिश की बन नन्ही बूँद
नदियां के संग बह जाऊँ
मैं ओढ़ आसमां की चादर
धरती की गोद में सो जाऊँ
पर इस‌ बेदर्दी दुनिया के
पास में न रहना चाहूँ
जीना चाहूँ पल आजादी के
छूना चाहूँ ऊचाईयों को
हरदम मुझको डर लगता है
इस दुनिया के शैतानों से
बस इतनी सी चाह है मेरी
देदो कोई पँख मुझे भी
इतना ऊँचा उड़ जाऊँ
हाथ किसी के में न आऊँ
***अनुराधा चौहान***



12 comments:

  1. बहुत खूब लिखा । लाजवाब

    ReplyDelete
  2. बहुत सुंदर भाव। बधाई

    ReplyDelete
  3. छोटी सी आशा नन्हे मन की विराट मे रह कर विलगता की। वाह !!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद कुसुम जी

      Delete
  4. ...या बारिश की बन नन्ही बूंद
    नदियां के संग बह जाऊं
    मैं ओढ़ आसमां की चादर
    धरती की गोद में सो जाऊं...
    बेहतरीन, उम्दा सृजन आदरणीया... वाह

    ReplyDelete
  5. आपकी सार्थक प्रतिक्रिया के लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

    ReplyDelete
  6. मन की छोटी छोटी आशाओं को पालना और उनकी पूर्ति की कामना करती सुंदर रचना ... मन तो पंछी है काश इंसान भी हो पाता ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. सही कहा आपने दिगंबर जी सादर आभार 🙏

      Delete