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Monday, July 16, 2018

मैं नन्ही ओस की बूंद


मैं नन्ही ओस की बूंद
नन्हा सा अस्तित्व मेरा
हे चांदी सी आभा मुझमें
चांद के जैसी शीतलता
प्रकृति से में जन्मती
प्रकृति की गोद में खेलती
प्रकृति की गोद में समा जाती
फूल पंखुड़ियों के दामन में
कुछ लम्हे प्यार के जीती
प्रेम का संदेश में देती
प्रकृति का श्रृंगार में करती
देती मोतियों सी आभा बिखेर
नहीं सूर्य का ताप सहन
धूप देख कुम्हला जाती
रात्रि मिलन का वादा कर
प्रकृति की गोद में सो जाती
मैं नन्ही ओस की बूंद
कुछ लम्हों का अस्तित्व मेरा
***अनुराधा चौहान***

11 comments:

  1. वाह बहुत सुन्दर!!
    मै आसमां का झरता अनुराग हूं
    या सिसकती रात का अश्क कतरा
    नही जानती पर पल्लव शैया पर
    आस का मोती बन बिखरती
    मै नन्ही तुषार बूंद.. .

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    1. सुंदर पंक्तियां सादर आभार कुसुम जी

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  2. बहुत सुन्दर 👌👌👌

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  3. बहुत ही खूबसूरत रचना

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  4. ओस की बूँद कितनी कहानियाँ समेटे रहती है शहरों के लिए गीतकारों के लिए .।। बहुत माँ। बावन रचना है ...

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  5. वाह....बहुत सुन्दर

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  6. धन्यवाद सागर जी

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