(चित्र गूगल से संगृहीत) |
उम्र थी उसकी छोटी सी
बच्ची थी वो इक नन्ही सी
आँखों में उसके चंचलता
थी बातें उसकी मोहक सी
पैरों में उसके पायल थी
वो छमक छमक कर चलती थी
न चिंता कोई फिकर उसे
न दुनिया की थी समझ उसे
उन्मुक्त गगन में उड़ने वाली
वह इक नन्ही सी चिरैया थी
उसको हैवानों ने देख लिया
पंजों में अपने जकड़ लिया
फूलों की नाजुक कली को
पल भर में मसल कर फेंक दिया
यह कैसी दुनिया जालिमों की
यहाँ बचपन भी महफूज नहीं
उनके करूण क्रंदन का
हैवानों पर कोई असर नहीं
यह वहशी जालिम हत्यारे
इनको जीने का कोई हक नहीं
***अनुराधा चौहान***
बहुत ही मार्मिक ......!!
ReplyDeleteधन्यवाद शुभा जी
Deleteहृदय स्पर्शी रचना ।
ReplyDeleteकब तक बाजों के पंजो मे चिरैया यूं दम तोडती रहेगी।
बेहद चिंता का विषय।
जी सही कहा आपने यह बेहद चिंता का विषय है
ReplyDeleteसादर आभार कुसुम जी
मर्मस्पर्शी रचना 🙏
ReplyDeleteसादर आभार आपका
Deleteवाकई इन कुकर्मियों, अघियों को जीने का कोई हक नहीं...
ReplyDeleteअच्छी रचना आदरणीया अनुराधा जी
धन्यवाद आदरणीय
ReplyDeleteचिंता का विषय....मर्मस्पर्शी रचना अनुराधा जी
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय भास्कर जी
Deleteशैतानों से भरी गली है, गुड़िया कहाँ खेलने जाए,
ReplyDeleteया घर में घुट-घुट कर जी ले या बाहर जा, लौट न पाए.
धन्यवाद आदरणीय
Deleteदिल को छूती सुंदर रचना।
ReplyDeleteसस्नेह आभार ज्योती जी
Deleteमार्मिक चित्रण
ReplyDeleteधन्यवाद ऋतु जी
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