Followers

Saturday, June 4, 2022

जीवन चक्र

चमक रहा अम्बर पर नवीन तारा है।
कहीं मिटा धरती से किया किनारा है॥

घटे बढ़े यह जीवन सदैव ऐसे ही।
मरे जिए अरु जन्में प्रवास सारा है॥

प्रताड़ना इस सच की सहे सदा मानव।
विछोह कंटक जैसा सहे बिचारा है॥

अधीर हो मन बैठा पुकारता उसको।
चला गया तन से जो अपार प्यारा है॥

समेट लो अब अंतस प्रकाश यह अपने।
चले चक्र नव प्रभु से प्रबंध न्यारा है।
*अनुराधा चौहान'सुधी'*

12 comments:

  1. अधीर हो मन बैठा पुकारता उसको।
    चला गया तन से जो अपार प्यारा है॥////

    किसी बिछुडें को समर्पित मार्मिक स्मृति-गीत प्रिय अनुराधा जी।सृष्टि में जीवन मिलन और विरह के दो रंगों से सजा है। यादों के सहारे जीना ही एक इन्सान की नियति है।सस्नेह के 🙏🌺🌺🌷🌷

    ReplyDelete
  2. यही जीवन चक्र है । कोई आता है कोई जाता है ।।

    ReplyDelete
  3. आपकी लिखी रचना 6 जून 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीया

      Delete
  4. समेट लो अब अंतस प्रकाश यह अपने।
    चले चक्र नव प्रभु से प्रबंध न्यारा
    यही तो जीवन है, कोई आता है कोई जाता है ।
    सुंदर सराहनीय रचना ।

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार जिज्ञासा जी।

      Delete
  5. सुन्दर सराहनीय सृजन अनुराधा जी !

    ReplyDelete
  6. सुंदर भावपूर्ण गीतिका सखी।
    हृदय स्पर्शी।

    ReplyDelete
  7. बेहद भावपूर्ण अभिव्यक्ति, नियति का खेल हम मानुष हैं कठपुतली, हम भी जाने तुम भी जाने कौन चलाये साँस की सुतली।
    सादर।

    ReplyDelete
  8. भावपूर्ण अनुभूति और अभिव्यक्ति
    बहुत सुंदर सृजन

    ReplyDelete
    Replies
    1. हार्दिक आभार आदरणीय।

      Delete