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Friday, September 21, 2018

सत्य का ज्ञान

माया माया करते करते
माया मिली न चैन
तृष्णा के भँवर में फसकर
मन हो गया बैचेन
मन होवे बैचेन
चैन अब कहां से पाएं
एक तृष्णा मिटी नहीं
दूजी फिर जग जावे
गले पड़ी है तृषणाएं
लिए हाथ कटारी
पूरी करते करते इनको
सब भूले दुनियादारी
अब झोला लेलो हाथ
या फिर हाथ कमंडल
तृष्णा पीछा न छोड़ें
घूम लो पूरा भूमंडल
तिनका तिनका जोड़ कर
कितना भी भरो खजाना
खाली हाथ आए जग में
हाथ खाली ही जाना
जिस दिन सत्य का ज्ञान
मनुष्य को होवे भैय्या
तब भवसागर से तरेगी
उसकी जीवन नैय्या
***अनुराधा चौहान***

16 comments:

  1. सच तृष्णा किसकी मिटी है।
    सार्थक व सुंदर

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  2. बेमिसाल प्रस्तुति
    बहुत सुंदर

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    1. धन्यवाद आदरणीय लोकेश जी

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  3. बहुत सुन्दर रचना

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  4. तिनका तिनका जोड़ कर
    कितना भी भरो खजाना
    खाली हाथ आए जग में
    हाथ खाली ही जाना
    जिस दिन सत्य का ज्ञान
    मनुष्य को होवे भैय्या
    तब भवसागर से तरेगी
    उसकी जीवन नैय्या।।

    बहुत ही सुंदर। कुंडलियों का आंशिक स्वाद देती सार्थक रचना। वाह

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    1. जी बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  5. वाह
    बिल्कुल सही कहा आपने अनुराधा जी

    कितना भी भरो खजाना
    खाली हाथ आए जग में
    हाथ खाली ही जाना
    जिस दिन सत्य का ज्ञान
    मनुष्य को होवे भैय्या
    तब भवसागर से तरेगी
    उसकी जीवन नैय्या

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  6. आध्यात्मिक सी सटीक भाव रचना ।

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  7. सुंदर प्रस्तुति

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