इरादे थे मजबूत
निकल दिए सफ़र पर
राह में थे कांटे मगर
मंजिल पाने की
आस लिए
आंखों में थी
जुगनू सी चमक
छूने चल दिए आकाश
अपनों ने रोका
गैरों ने टोका
रास्तों को हमारे
पत्थरों से रोका
इरादे थे मजबूत
कदम बढ़ते गए
ख्वाबों के जुगनू
जगमगाते रहे
मंज़िल के अपनी
करीब आ गए हम
मिली कामयाबी
हालात बदल गए
अपनों के अब देखो
जज़्बात बदल गए
लगाने गले भीड़ बढ़ने लगी
क़िस्मत पर हमारे
रश्क करने लगी
सितारों से तुलना
लगी करने हमारी
मगर मस्तमौला है
फितरत हमारी
सितारा नहीं जुगनू
बन कर ही खुश हैं
मंज़िल को पाकर
हम बहुत खुश हैं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
वाह !! बहुत खूब सखी
ReplyDeleteबहुत सुंदर
ReplyDeleteधन्यवाद दी
DeleteBahut khoob
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