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Monday, November 12, 2018

इरादे थे मजबूत


इरादे थे मजबूत
निकल दिए सफ़र पर
राह में थे कांटे मगर
मंजिल पाने की
आस लिए
आंखों में थी
जुगनू सी चमक
छूने चल दिए आकाश
अपनों ने रोका
गैरों ने टोका
रास्तों को हमारे
पत्थरों से रोका
इरादे थे मजबूत
कदम बढ़ते गए
ख्वाबों के जुगनू
जगमगाते रहे
मंज़िल के अपनी
करीब आ गए हम
मिली कामयाबी
हालात बदल गए
अपनों के अब देखो
जज़्बात बदल गए
लगाने गले भीड़ बढ़ने लगी
क़िस्मत पर हमारे
रश्क करने लगी
सितारों से तुलना
लगी करने हमारी
मगर मस्तमौला है
फितरत हमारी
सितारा नहीं जुगनू
बन कर ही खुश हैं
मंज़िल को पाकर
हम बहुत खुश हैं
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

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