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Friday, November 16, 2018

अतिथि देवो भव

अतिथि देवो भव की
रीत है सदियों पुरानी
पीढ़ी दर पीढ़ी हमने
यह सीख सदा ही जानी
वो भी क्या दिन थे
जब रिश्तेदारों का
होता आना-जाना था
यादों की पोटली से
निकलता पुरानी
यादों का बड़ा खजाना था
हर दिन होता उत्सव सा
रातें होती उजियारी सी
खट्टी-मीठी शरारतों के बीच
कब वक़्त निकलता बातों में
धीरे-धीरे वक्त के आगे
हर चीज बदलते देखी है
वक्त की हो गई बड़ी कमी
और प्रीत बदलते देखी है
अतिथि देवो भव की भी
अब रीत बदलते देखी है
आना-जाना तो लगा रहता
पर पहले जैसी बात कहां
घूमने में निकलता वक्त सभी
बातों की किसी को फुर्सत कहां
किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
अब सब सपना सा लगता है
घूमों फिरो सेल्फी खींचो
बस वही अब सब का सपना है
***अनुराधा चौहान***

17 comments:

  1. बहुत सही कहा आपने अनुराधा जी ....सुंदर रचना |

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  2. बहुत सुन्दर रचना सखी

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  3. बहुत सही और सुंदर सखी सच समय के साथ सब अनुभूतियां भी बदल गई।

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    1. धन्यवाद सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  4. आना-जाना तो लगा रहता
    पर पहले जैसी बात कहां
    घूमने में निकलता वक्त सभी
    बातों की किसी को फुर्सत कहां
    किस्से, कहानी, हंसी ठिठोली
    अब सब सपना सा लगता है
    घूमों फिरो सेल्फी खींचो
    बस वही अब सब का सपना है
    कड़वी सच्चाई व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचाने, अनुराधा दी।

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    1. बहुत बहुत आभार ज्योती जी

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक १९ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी मेरी रचना को स्थान देने के लिए

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  6. बहुत सुन्दर सटीक एवं सार्थक अभिव्यक्ति...
    वाह!!!

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  7. अतिथि तुम कब आओगे? पर उस से पहले यह बताओ कि तुम हमारे यहाँ से कब जाओगे? कितनी बार हमारे यहाँ और कितनी बार बाहर खाना खाओगे? यह तो बताओ कि हमारे लिए उपहार क्या लाओगे? और हमारे यहाँ से कुछ उठा तो नहीं ले जाओगे?

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    1. वाह बहुत सुंदर पंक्तियां आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  8. सब बातें पुरानी हो गयीं आज ... आज अतिथि आये तो दुसरे दिन सोचते हैं सब कब जायेंगे ... अच्छी रचना है ...

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  9. बहुत ही यथार्थ परक रचना और गोपेश जी ने रचना के विषय देती टिप्पणी से रचना को और भी रोचक बना दिया | सचमुच वो समय कितना बदल गया तो अतिथियों के सत्कार की वो पुरानी रीत भी क्यों ना बदलती ? आभार |

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    1. बहुत बहुत आभार रेनू जी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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