पत्थरों के शहर में
ज़ज्बात बदल गए
मिट गए आंगन
लोगों के हालात बदल गए
हवाओं को रोकने लगी
यह ऊंचीअट्टालिकाएं
सांप सी फैली सड़कों ने
डसा मानव की खुशियों को आज
हवाओं में जहर घोल रही
सड़कों पर दौड़ती गाड़ियां
बीमारी को जन्म देती
प्रदूषण की बढ़ती मात्रा
शहर की जिंदगी ने
दिए जितने ऐशो-आराम
बदले में हमसे छीनी
सुकून की सांसें है
दिए जितने ऐशो-आराम
बदले में हमसे छीनी
सुकून की सांसें है
खान-पान का स्वरूप
भी बिगड़ा हुआ है
रंग, और रसायनों में
लपेटा शहर का खाना है
पर्यावरण को स्वच्छ बनाते
पेड़ निरंतर कटते जाते
नदी नाले गायब करके
उन पर बंगलें बनते जाते
शहरों की मशीनी जिंदगी
में इंसान मशीन बन गया
स्वच्छ हवा-पानी बिन
बीमारी का पुतला बन गया
अच्छी शिक्षा और रोजगार
भी देता हमें शहर है
अराजकता और गुंडागर्दी का
भी दिन-प्रतिदिन बढ़ता कहर है
***अनुराधा चौहान***
ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 14/01/2019 की बुलेटिन, " अंग्रेजी के "C" से हुआ सिरदर्द - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शिवम् जी
Deleteपत्थरों के शहर में जज्बात बदल गए हैं । बेहतरीन समसामयिक रचना ।शुभकामनाएं आदरणीय अनुराधा जी।
ReplyDeleteपत्थरों के शहर में
ReplyDeleteज़ज्बात बदल गए
मिट गए आंगन
लोगों के हालात बदल गए. ...बेहतरीन रचना 👌
अनुुुुराधा जी, आपने तो सच्चाई हूबहू उतार कर रख दी...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार अलकनंदा जी
Deleteलोगों के हालात बदल गए
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
Deleteजी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार श्वेता जी
Deleteबेहतरीन रचना सखी ,सादर
ReplyDeleteसच है सखी पत्थरों के शहरों में जज्बात भी पथरिले हो गये और इसी स्वार्थ में हम स्वंय को और अपनी आगत पिढ़ियों के लिये बस समस्या और भयानक परिणाम बटोर रहे हैं।
ReplyDeleteबहुत सार्थक सृजन।