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Thursday, January 24, 2019

अवसाद से घिरा मन

इच्छाएँ दम तोड़ने लगतीं हैं
आशाएंँ मुख मोड़ने लगतीं हैं
वक़्त भी भागता रहता है
अपनी तेज रफ्तार से
हमें बहुत कुछ देकर
हमसे बहुत कुछ लेकर
खो जाए ज़िंदगी में
जब कोई सदा के लिए
तब अवसाद से घिर जाता मन
कुछ न भाता है रात -दिन
फिर अंधेरा आंँखों को भाता है
बसंत बिल्कुल न सुहाता है
तन्हाइयांँ रास आतीं हैं
चाँदनी आंँखों में चुभती है
सिर्फ यादें उनकी दिन-रात 
साथ नहीं छोड़ती
अंदर ही अंदर दिल तोड़ती
मन भी कहीं शून्य में 
खोता-सा नजर आता है
अंदर कुछ टूटता नजर आता है
निकलना जितना भी चाहें
यादों के भंँवर में फंसते जाते हैं
सब कुछ भूल जाएं हम मगर
 उन्हें हम भूल नहीं पाते
***अनुराधा चौहान***

चित्र गूगल से साभार

19 comments:

  1. अवसाद का सुन्दर सृजन सखी ,सही कहा आप ने मन अवसाद का अपनी और खींचता, सुकून की चाह में मनु अपना अस्तित्व गवाता जा रहा , अवसाद दीमक की तरह मनु मन को आहत करता रहता, आज हमारे एडल्ट सबसे ज्यादा अवसाद ग्रथ.... बहुत सुन्दर आदरणीया
    सादर

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    1. बहुत बहुत आभार सखी आपकी सुंदर प्रतिक्रिया के लिए

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  2. अवसाद की स्थिति को बख़ूबी लिखा है आपने ... ऐसे हालात को लिखने कि अच्छा प्रयास है ...

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    1. बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  3. बेहतरीन वर्णन

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  4. आदरणीया आपकी रचना पढ़ी बहुत ही पसंद आई परन्तु कुछ आवश्यक त्रुटि सुधार करें तो बेहतर हो जैसे
    वक्त को वक़्त करें !
    यदि आप नुक़्ता सम्बन्धी त्रुटियों को ध्यान में रखें तो बेहतर है।
    रात-दिन ऐसे लिखें !
    आंखों को आँखों लिखें !
    आपने कई स्थान पर चन्द्रबिन्दु नहीं लगाए कृपया इसका अवश्य ध्यान दें ! चन्द्रबिन्दु का स्थान ( . ) डॉट कदापि नहीं ले सकता।
    शुन्य को शून्य लिखें !
    खोता सा को कुछ इस तरह लिखें , खोता-सा


    अंत में यही कहूँगा कि वर्तनी सम्बन्धी त्रुटियों की अधिकता है जिसे आप जल्द दूर करें ! आलोचना हेतु क्षमा प्रार्थी। सादर

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    1. जी मार्गदर्शन के लिए आपका बहुत बहुत आभार आदरणीय

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  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २८ जनवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. बहुत बहुत आभार श्वेता जी

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  6. बहुत सुन्दर अनुराधा जी.
    अवसाद, कुंठा, निराशा आदि तो सिक्के का एक ही पहलू दिखाते हैं. इस सिक्के के दूसरी ओर आशा है, इच्छा-शक्ति है और आत्म-विश्वास है. फिर अवसाद को आनंद में बदलने में या पतझड़ को वसंत में बदलने में क्या देर लगनी है?

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    1. सही कहा आपने आदरणीय बहुत बहुत आभार आपका

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  7. बहुत सुंदर........ सादर स्नेह सखी

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  8. अवसाद पर बहुत ही सार्थक प्रस्तुति...

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    1. बहुत बहुत आभार सुधा जी

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  9. बहुत सार्थक कथ्य! बधाई!!!!

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