तलाश किसी की
पूरी नहीं होती
कोई न कोई कमी
बनी ही रहती
किसी को रहती
प्यार की तलाश
कोई किसी से
मिलने को बेकरार
पैसों पर बैठे हैं
पर पैसों की तलाश है
गरीब घर में भूखे हैं
रोटी की तलाश है
बच्चे तलाशतेे रहते
चारदीवारी में अपने
गुम होते बचपन
की मस्ती को
माँ-बाप को रहती
बुढ़ापे में बच्चों के साथ
कुछ सुकून के
पलों की तलाश
तलाशते रहते हैं
सुकून सभी पर किसी
को मिलता है नहीं
हरदम सभी को रहती
अपनेपन की तलाश
बचपन से जवानी तक सब
करते कुछ न कुछ तलाश
***अनुराधा चौहान***
सुन्दर रचना सखी
ReplyDeleteसादर
बहुत बहुत आभार सखी
Deleteसुकून ... वो शब्द जिसे हर कोई सराहना है चाहता है, लेकिन अंतहीन तलाश यह, बाकि रह जाता है।
ReplyDeleteधन्यवाद आदरणीय
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