तेरे होने का ख्याल
दिल से जाता नहीं
तू यहीं है यहीं कहीं है
यह एहसास जगाता है
काट कर खुशियों की डोर
तुम चले गए जाने कहांँ
जुड़ सके काश यह डोर
ऐसा कब होता है यहांँ
काश मिल जाती कोई पतंग
जो पंँहुचा देती मेरा पैगाम
किस गांव जा बसे तुम
नहीं है वहां का कोई नाम
शायद इतना सा ही था
तेरे मेरे साथ का बंधन
तुम्हें भूल पाऊंँ कभी भी
ऐसा नहीं आता कोई पल
रिश्ते की इस बंधन का
बड़ा कमजोर था धागा
किस्मत से न लड़ पाया
ज़िंदगी से टूट गया अभागा
हाथ में ले टूटी डोर
सूने आकाश को देखते हैं
दिख जाए कहीं वो सूरत
जिसके लिए दिन-रात तरसते हैं
बहुत कमजोर होती है
ज़िंदगी की यह लड़ियांँ
कब टूटकर बिखर जाएंँ
जीवन की यह घड़ियांँ
अनमोल धरोहर जीवन की
होते हैं यह रिश्ते सभी
इन्हें संजोकर रखना
रिश्ते बिना जीवन नहीं
तब तक कदर नहीं होती
जब रिश्ते करीब होते हैं
बिछड़ जाते हैं जब कहीं
तो मिलने को तरसते हैं
***अनुराधा चौहान***
चित्र गूगल से साभार
बेहतरीन अन्तरंग आवेग लिए सुंदर रचना , आदरणीय अनुराधा जी।
ReplyDeleteरिश्ते की इस पतंग का
ReplyDeleteबड़ा कमजोर था धागा
किस्मत से न लड़ पाया
जिंदगी से टूट गया अभागा....बहुत सुन्दर सखी 👌
बहुत बहुत आभार सखी
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